अस्मिता ही नहीं अस्तित्व भी खतरे में

त्रिलोचन भट्ट

उत्तराखंड के लोगों को गाली देना और गाली के विरोध में आंदोलन करने वालों को सड़क छाप कहना निःसंदेह हमारी अस्मिता पर हमला है। हमारी अस्मिता पर और भी कई तरह के हमले हो रहे हों। अंकिता हत्याकांड से बड़ा हमला हमारी अस्मिता पर और क्या हो सकता है। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नामंजूर किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट के वकील कॉलिन गोसाल्वेस ने एक भावुक पत्र लिखा है। इसके अलावा तथाकथित विकास के नाम पर जिस तरह से जंगलों को काटा जा रहा है, वह हमारे अस्तित्व को भी मटियामेट करने वाला है।

उत्तराखंड में युवा और महिलाएं किस तरह हिंसक हो रहे हैं, इस तरफ इशारा करते कुछ वीडियो सामने आये हैं। उत्तराखंडियों को गाली देने और विरोध करने वालों को सड़कछाप कहने वालों को सड़कछाप कहने के मामले को लेकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट के पुतले को बम से उड़ाया गया। किसी के पुतले की शवयात्रा निकालना या पुतला दहन करना पहले भी आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं। लेकिन पुतले को बम से उड़ा देना पहली बार ही हुआ है। इतना ही नहीं, इस पुतला धमाका को सोशल मीडिया पर जारी करते हुए इस तरह के वास्तविक धमाके करने की चेतावनी दी गई है।

इस तरह की हरकत का विरोध करने वालों से पूछा जा रहा है भगत सिंह ने भी अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए धमाका किया था। पहली बात तो ये कि भगत सिंह के धमाके में कोई हिंसा नहीं थी। न असली न सांकेतिक। असेंबली हॉल में खाली जगह पर धमाका किया गया था। यहां आपने एक व्यक्ति के पुतले को धमाके से उड़ाया और वास्तविक धमाका करने की धमकी भी दी। दूसरा सवाल धमाका समर्थकों की ओर से यह आ रहा है कि जब पुतले की शवयात्रा या पुतले के दहन पर सवाल नहीं उठाये जाते तो इस पर क्यों उठाये जा रहे हैं?
यहां पुतला धमाका और पुतला दहन के बुनियादी फर्क को समझने की जरूरत है। पुतला दहन या पुतले की शवयात्रा में किसी की हत्या करने वाली बात नहीं होती। वहां संदेश यह होता है कि जिसका पुतला है, उसकी मौत हो गई है।

ध्यान रखें यह सांकेतिक मौत हत्या नहीं स्वाभाविक मौत के रूप में चित्रित की जाती है। कुछ लोग तो ऐसी पुतला शवयात्रा में रोने का भी अभिनय करते हैं। हालांकि फिर कहता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि किसी की, किसी बात से असहमत होने पर उसका पुतला जलाया जाए। बात पुतला धमाके की करें तो यह न सिर्फ जघन्य है, बल्कि लगता है, कोई आतंकवाद है या आतंकवाद का अभ्यास है। हालांकि मेरा मानना है कि ऐसा अति उत्साह और नासमझी में किया गया है। हमारा संविधान हर मनुष्य की गरिमा की बात करता है। हमें उस व्यक्ति की गरिमा का भी ध्यान रखना होगा, जिससे हम असहमत होते हैं।

दूसरा वीडियो पौड़ी जिले से आया। इस वीडियो में दो गांवों की महिलाएं चारागाह पर अपने हक-हकूक को लेकर आपस में भिड़ी हुई हैं। उत्तराखंड में दो गांवों में जंगल की सीमा को लेकर इस तरह के विवाद अक्सर होते रहे हैं, ऐसे विवादों का हल अक्सर दोनों गांवों की पंचायतें मिल बैठकर करती रही है। दोनों पक्षों के बीच इस तरह से लठमार युद्ध पहली बार दिखा। इस घटना में दोनो तरफ की कुछ महिलाओं के घायल होने की भी सूचना मिली।

ये दोनों घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि हमें हिंसक बनाया जा चुका है। नफरत एक धर्म विशेष के लोगों को लेकर शुरू की गई थी, लेकिन अब यह नफरत अपने ही धर्म के व्यक्ति का पुतला धमाके में उड़ाने और अपने ही पड़ोसी गांव, जिससे हमारे कई तरह के रिश्ते होते हैं, तक को निशाने पर लेने तक उतर आई है। यदि आप अब भी इसे नहीं समझ पा रहे हैं तो समझ जाइये और यदि आपने ठान ली है कि सब कुछ बर्बाद होते ही देखना है तो फिर रहने दीजिए। मेरे जैसे सच्चाई बताने वाले को गालियां देने के लिए आप स्वतंत्र हैं।

हाल के सालों में हमारी अस्मिता पर सबसे बड़ा हमला अंकिता की हत्या करके किया गया। हम सब सड़कों पर भी उतरे। लेकिन आज तक सरकार ने यह नहीं बताया कि आखिर वह वीआईपी कौन था, जिसके लिए एक बेटी की अस्मिता को दांव पर लगाया जा रहा था और विरोध करने पर उस बेटी की हत्या कर दी गई। इस मामले की सीबीआई जांच करवाने की मांग को अब सुप्रीम कोर्ट में भी नामंजूर कर दिया गया है। मैं यहां सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी कर रहे वकील कॉलिन गोंसाल्वेस का भावुक पत्र पढ़ना चाहता हूं। जरूर सुनिये। उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी किये गये अपने पत्र में इस मामले में लीपापोती के कई सबूत रखे हैं।

लिखते हैं- मुझे खेद है अंकिता कि आपकी हत्या की सीबीआई जांच की मांग करने वाले सुप्रीम कोर्ट में आपके मामले का निपटारा कर दिया गया और हम अभी तक मुख्य अपराधी को पकड़ने में कामयाब नहीं हुए हैं। मुझे खेद है सोनी देवी, आपकी प्यारी बेटी की हत्या के लिए एक वीआईपी ने होटल में काम करने वाली एक छोटी लड़की अंकिता से विशेष सेवाएं मांगी। उसके इनकार के कारण उसकी हत्या हो गई।
मुझे इस बात का भी दुख है कि हमारा पुलिस बल राजनेताओं के सामने इतना झुक गया है कि वह किसी भी अपराध को छुपाने के लिए तैयार हो जाता है।

सबसे पहले, अंकिता और उसके दोस्त पुष्पदीप के बीच व्हाट्सएप चैट, जिसमें उसने शिकायत की थी कि एक वीआईपी उसके होटल में आ रहा था और उससे विशेष सेवाओं की मांग कर रहा था, उसे उत्तराखंड पुलिस ने चार्जशीट से हटा दिया। उन चैट में उसने अपने दोस्त से तुरंत आने और उसे बाहर ले जाने के लिए कहा। दूसरे, उसके दोस्त पुष्पदीप और वीआईपी के सहयोगी के बीच स्विमिंग पूल में हुई बातचीत का चार्जशीट में उल्लेख नहीं किया गया, जबकि पुष्पदीप ने पुलिस द्वारा दिखाए गए फोटो के आधार पर सहयोगी की पहचान की थी। तीसरे, सहयोगी अपने बैग में नकदी और हथियार लेकर जा रहा था और फिर भी उसे न तो आरोपी बनाया गया और न ही पुलिस ने उससे पूछताछ की।

चौथे, होटल कर्मी अभिनव का यह बयान कि अंकिता को जबरन बाहर निकालकर हत्या करने से पहले वह अपने कमरे में रो रही थी, चार्जशीट में उल्लेख नहीं किया गया। पांचवें, जिस कमरे में अंकिता रुकी थी, उसकी प्रयोगशाला की फोरेंसिक रिपोर्ट को कभी भी चार्जशीट में संलग्न नहीं किया गया। छठा, अपराध स्थल यानी जिस कमरे में वह रुकी थी, उसे स्थानीय विधायक और मुख्यमंत्री के आदेश पर तुरंत ध्वस्त कर दिया गया। सातवां, वीआईपी से बातचीत कर रहे होटल के कर्मचारियों का मोबाइल फोन कभी जब्त नहीं किया गया। आठवां, होटल का सीसीटीवी फुटेज, जिससे वीआईपी और उसके साथियों की पहचान स्पष्ट रूप से पता चलती, कभी भी इस सुविधाजनक बहाने से पेश नहीं किया गया कि… कैमरे काम नहीं कर रहे थे।

नौवां, जिन गवाहों ने गवाही दी कि अंकिता अपनी मौत से पहले परेशान थी, उनकी कभी ठीक से जांच नहीं की गई। दसवां, उत्तराखंड पुलिस द्वारा दिया गया बयान कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड की जांच की गई थी और कुछ भी अप्रिय नहीं मिला, भ्रामक था.. क्योंकि रिकॉर्ड केवल मृतक की चैट के संबंध में था, होटल कर्मचारियों के बारे में नहीं।

कॉलिन गोंसाल्वेस के पत्र के अनुसार एक आरोपी के साथ मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी अंकिता को दिखाने वाले वीडियो का अभियोजन पक्ष द्वारा गलत उल्लेख किया गया था, जो यह दर्शाता है कि उसकी हत्या और नहर में शव फेंकने से पहले वह किसी भी तरह की परेशानी में नहीं दिख रही थी। हालांकि, पुष्पदीप ने अदालत में पेश किए गए साक्ष्य में कहा कि मोटरसाइकिल पर बैठी अंकिता ने उसे फोन किया और कहा कि वह बहुत डरी हुई है क्योंकि वह लोगों से घिरी हुई है और बात नहीं कर पा रही है।

मुख्य आरोपी पुलकित आर्य ने अब ट्रायल कोर्ट से खुद का नार्काे विश्लेषण करने का अनुरोध किया है, जिससे संकेत मिलता है कि वह घटनाओं के बारे में साफ-साफ बताने के लिए तैयार है, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को खारिज करके समय से पहले ही मामले को खत्म कर दिया। आरोपियों द्वारा खुद की ऐसी गवाही से वीआईपी की पहचान और भूमिका सामने आ जाती। पुलिस ने वीआईपी की पहचान छिपाई है। सीबीआई को जांच अपने हाथ में लेने और आगे की जांच करने का निर्देश देकर इस बाधा को दूर किया जा सकता था। अंकिता की मां ने अधिकारियों को लिखे पत्र में आरोप लगाया कि वह एक उच्च पदस्थ राजनीतिक पदाधिकारी थे, जो अक्सर अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ होटल में आते थे। सीसीटीवी फुटेज या कर्मचारियों के मोबाइल फोन प्राप्त करने के लिए उठाए गए प्राथमिक कदम भी मुख्य अपराधी की पहचान उजागर कर देंगे। और अंत में इस पत्र में लिखा है- क्षमा करें अंकिता। यह भारत है। आम महिलाओं की जिंदगी मायने नहीं रखती। और उच्च और शक्तिशाली लोग बार-बार बच निकलेंगे। सुप्रीम कोर्ट के वकील का यह पत्र काफी कुछ साफ कर देता है।

तथाकथित विकास के नाम पर हमारे अस्तित्व को भी मिटाने का प्रयास हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेंट चेंज के इस दौर में तथाकथित विकास के नाम पर जिस तरह से लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं। देहरादून से ऋषिकेश के मार्ग का सफर 15 मिनट कम करने के लिए 3000 पेड़ काटे जाने की योजना है। हालांकि फिलहाल अभिषेक नेगी की याचिका पर हाईकोर्ट ने इन पेड़ों को काटने पर रोक लगा दी है। लेकिन जिस तरह से अदालतें हाल के सालों में फैसले देती रही हैं, उससे नहीं लगता कि इन पेड़ों को काटने से हमेशा के लिए बचा पाना संभव हो सकेगा।

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