ये मेरा नववर्ष नहीं : चुनिंदा टिप्पणियां

ये साल पर एक जमात ने खूब हल्ला मचाया कि ये तो आंग्ल नव वर्ष है। ये हमारा नहीं है। इसी पर यहां कुछ चुनिंदा टिप्पणियां प्रकाशित की जा रही हैं। सभी टिप्पणियां सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। आप भी पढ़िये-

सोशल मीडिया भी आंग्ल है
कुछ प्यारे क्यूट बंधुओं का कहना है कि नववर्ष की बधाई देने में आंग्ल का उल्लेख अनिवार्य है. आंग्ल का संबंध यदि अंग्रेजी या अंग्रेजों से है तो प्यारे क्यूट धर्मांध बंधुओ अंग्रेजों ने खुद इस ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1752 में अपनाया था ! वहां इसे अपनाते हुए शुरुआत में दंगे जैसे हालात हो गए  !
लेकिन मान लेते हैं कि आपकी बुद्धि के समूचे व्यास और परिधि में आंग्ल का आशय विदेशी अंकित है तो यार भले (?) मानुषो, ये फेसबुक, एक्स, व्हाट्स ऐप यानि समूचा सोशल मीडिया और यहां तक कि वह मोबाइल भी जिसके जरिये तुम आंग्ल राग अलाप रहे हो,सब आंग्ल ही है, बंधु. इसमें से कोई भी सरसंघचालक जी ने नहीं खोजा है ! पैंट, शर्ट, जींस,टी शर्ट, मोटर कार और वायुयान  सभी तो आंग्ल ही है प्यारे ! कंठ से निकली विष बुझी आवाज़ भले ही तुम्हारी हो पर उसे दूर दूर तक पहुंचाने वाला भोंपू भी आंग्ल है प्यारे  ! वो सेटलाइट चैनल जिनके जरिये सब बाबा घर घर पहुंच कर दम भरते हैं कि विज्ञान उनके सामने पानी भरता है, वो भी विज्ञान की खोज और तुम्हारी भाषा में “आंग्ल” ही है बंधु. एक मित्र ने सोशल मीडिया पर बड़ा रोचक प्रश्न उठाया कि जो नव वर्ष को “आंग्ल” कह रहे हैं, वो क्या दैनिक उपयोग में हिंदी तिथियों का प्रयोग करते हैं  ?
यह कैलेंडर और इसका नया वर्ष तो अंतरराष्ट्रीय है, तुम्हें न पसंद हो तो तुम अपने लिए अलग दुनिया खोजो ! बलात्कार के आरोपी भगौड़े नित्यानंद ने एक कैलासा बसाया तो है, वहां कोशिश करके देखो !  लेकिन उस कैलासा वाले भी सोशल मीडिया के जरिये ही दुनिया को अपने बारे में बता पाते हैं और वो तो “आंग्ल” है.
तो फिर कहीं और ही खोजना पड़ेगा !
इंद्रेश मैखुरी

 

राष्ट्रकवि के ये कैसे भाव?
जिस प्रकार लोक कवि भले ही लोक को ठीक से जानता ना हो, मंच के अतिरिक्त कहीं लोक का बताता, पहनता ना हो, खानपान से लेकर रहन–सहन में उसे केवल प्रचार, प्रसार और प्रदर्शन पसंद है, रचनाओं से अधिक आलोचनाओं पर केंद्रित रहता है और उसी को लोक मानता है ठीक उसी प्रकार राष्ट्रकवि होने के लिए भी राष्ट्र हेतु रचना जरूरी नहीं है बल्कि बाहर बाकी की आलोचना ही आवश्यक है।
नववर्ष की आलोचना से ही आंग्ल नववर्ष शब्द अस्तित्व में आया। उक्त कविता में लगेगा कि भाव गहरे हैं लेकिन आप देखेंगे कि राष्ट्रकवि दिनकर जी ने आंग्ल नववर्ष की आलोचनाओं में अपनी ही ऋतुओं की भी आलोचना कर डाली। उन्हें नए वर्ष परिवर्तन हेतु ठंड, बारिश, बर्फ इत्यादि के परिवर्तन में उल्हास नहीं नज़र आता है जबकि भारत ही नहीं विश्वभर में सबसे अधिक पर्यटक ठंडी जगहों पर जाते हैं बर्फ तथा बारिश पसंद करते हैं।
फिर भी मान लीजिए कि बुग्यालों में हरियाली नहीं, पेड़ों में फूल और पत्ते नहीं तथा रीत में वो बहार नहीं लेकिन नववर्ष से महज़ पांच–छः दिन पहले जब क्रिसमस के दिन तुलसी पूजन दिवस मनाने का प्रचलन लाया गया उस तुलसी में या उस मौसम में कौन सी बहारें, फूल, पत्ते और हरियाली होती होंगी?असल बात यह है कि अपने इर्द–गिर्द नज़र उठाकर देखो एक भी रचना (वस्तु) देशी नहीं है क्योंकि हमने रचना कभी सीखा ही नहीं।
आरपी विशाल

 

और अब ये व्यंग्य टिप्पणी

सूक्ष्म शंका  ???
 संतों,
 जैसा कि आप जानते ही हैं कि  एक सच्चा  और कट्टर हिंदू होने के नाते  धर्मरक्षार्थ मैने आंग्ल नववर्ष पर न बधाई दी या ली और न ही रात में पार्टी कर दारू – मुर्गा सेवन किया  ( दारू मुर्गा जैसी बुराईयां मैने पौष मास की 17 गते दिन में ही निपटा दी थीं ) ..
लेकिन  हे संतों, आज स्वास्थ्य परीक्षण हेतु मुझे विदेशी चिकित्सा वाले अस्पताल में जाना पड़ा  , जहाँ अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर – नर्स   ने  विदेशी विज्ञान – तकनीक पर आधारित जाँच करवा  अंग्रेजी दवाइयां  भक्षण करने को दी हैं l
और तो और,  मेरे जैसे ब्राह्मण की गरिमा और मर्यादा के अनुकूल पवित्र भोजपत्र पर संस्कृत में पर्चा लिखने  की बजाय दुष्टों ने पर्चा तक अंग्रेजी में लिखा है  ,जो कि निसंदेह घोर कलियुग की चौथी लात ( शास्त्रों के अनुसार चतुर्थ चरण  ) का स्पष्ट प्रमाण है l
 तो हे संतों , शंका यह है कि क्या इतने अंग्रेजी़ एटमोसफेयर में ( अर्थात  परिवेश में) इलाज करवाने से  से मेरे कट्टर हिंदुत्व पर कोई प्रतिकूल प्रभाव तो न पड़ेगा ? और चित्रगुप्त जी  ने आंग्ल नववर्ष का बहिष्कार करने के पुण्य में मुझे   स्वर्ग में मेनका – रम्भा – उर्वशी जैसी सुमुखी गौरवर्णा अप्सराओं वाली कालोनी में  जो 4 BHK का फ्लैट ( with lawn and private parking) आवंटित किया था, अब इस पाप के कारण  उसे रद्द कर मुझे  नरक के स्लम में काले कलूटे खूंखार यमदूतों वाली अंधरी गली की कोने वाली खोली में भेजना तय तो न कर देंगे?
 कृपया शंका का समाधान कर मुझ गरीब ब्राह्मण पर कृपा करें..
मुकेश प्रसाद बहुगुणा

 

 

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