
प्रधानमंत्री की जनसभा के बहाने ऑल वेदर रोड
Trilochan Bhatt
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 4 दिसंबर, 2021 को देहरादून में एक जनसभा करने वाले हैं। कहा जा रहा है कि यह उनका चुनावी बिगुल होगा। फरवरी और मार्च महीने में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री अक्सर छोटे राज्यों में चुनाव पूर्व ही अपनी जनसभा कर लेते हैं, जबकि बड़े राज्यों में वे चुनाव के पहले दिन तक जमे रहते हैं, ठीक उस मिनट तक जबकि नियमानुसार चुनाव प्रचार की सीमा खत्म नहीं हो जाती। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले देहरादून की 4 दिसंबर को होने वाली जनसभा में बहुत कुछ घोषणाएं करने वाले हैं। यह भी माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जाने की आचार संहिता लागू होने से पहले हुए कुमाऊं में भी ऐसी ही एक जनसभा करेंगे।
मुझे याद है कि उत्तराखंड विधानसभा के 2017 के चुनाव से ठीक पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून के परेड ग्राउंड में आए थे। तब उन्हें प्रधानमंत्री बने लगभग 2 साल का समय हुआ था और उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। खासकर अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के सीधे-सादे तौर-तरीके से रहने के बजाय नरेंद्र मोदी कुछ अलग करने के प्रयास में भारतीय जनता का आकर्षण बन गए थे। पहले दिन संसद जाते हुए रोना, लच्छेदार भाषण देना, तरह-तरह के कपड़े बदलना, यह सब तब भारतीय जनता को खूब भा रहा था। कहना न होगा कि अब भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो प्रधानमंत्री के लिए लटके-झटके और लच्छेबाजी को सबसे बड़ी योग्यता मानकर चल रहे हैं। मुझे याद है कि 2017 के चुनाव से पहले की प्रधानमंत्री की परेड ग्राउंड जनसभा में भारी हुजूम उमड़ा था। उन्होंने अपनी रणनीति के अनुसार कई घोषणाएं भी की थी। उन में सबसे महत्वपूर्ण घोषणा, जो आज पहाड़ की बर्बादी का कारण बनी हुई है, वह थी ऑल वेदर रोड।
उस समय लोगों के समझ में मोटा-मोटा यही आया था कि ऑल वेदर रोड माने ऐसी सड़क जो किसी भी मौसम में बंद नहीं होगी। पहाड़ के प्रलयंकारी बारिश हो या भारी बर्फबारी, चारधाम को जाने वाली सड़कें लगातार खुली रहेंगी। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सवाल भी किया था कि यह ऑल वेदर रोड होती क्या है, हालांकि जैसे कि इन साढ़े 7 सालों में परंपरा बनी है, उसी के अनुसार इस सवाल का जवाब नहीं मिला। बाद में सरकार को एहसास हुआ कि उत्तराखंड जैसे भौगोलिक क्षेत्र वाले राज्य में हर मौसम में सड़क खुली रखना किसी भी हालत में संभव नहीं है। खासकर बरसात में तो यह संभव ही नहीं है। लेकिन, इस गलती को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया। जब इस तथाकथित ऑल वेदर रोड का निर्माण शुरू हुआ, तब पता चला कि परियोजना का नाम बदलकर चार धाम सड़क परियोजना रख दिया गया है। अब भी ज्यादातर लोग प्रधानमंत्री की उस समय की घोषणा के अनुरूप इस प्रोजेक्ट को चार धाम रोड के नाम से ही जानते और पहचानते हैं।

4 दिसंबर की प्रधानमंत्री की रैली को लेकर मेरे मन में पहला सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री की इस जनसभा में वैसी भीड़ जुट पाएगी, जैसी की 5 साल पहले जुटी थी। इस दौरान गंगा यमुना में बहुत पानी बह चुका है। लाख प्रयास के बाद भी अधिसंख्य जनता के मन में मोदी की छवि पहले वाली नहीं रह गई है। उधर परेड ग्राउंड की शक्ल-सूरत भी बदल चुकी है। स्मार्ट सिटी के नाम पर देहरादून को खोदने का जो काम शुरू किया गया, उसका सबसे बड़ा शिकार परेड ग्राउंड ही हुआ है। प्रधानमंत्री की रैली के लिए यह ग्राउंड फिलहाल जैसे-तैसे तैयार किया गया है। इसकी क्षमता भी अब पहले जितनी नहीं रह गई है। पिछली जनसभा में पूरा परेड ग्राउंड भरने के साथ ही आसपास की सड़कों पर भी भीड़ की रेलम-पेल थी। यदि इस बार भी 5 साल पहले जैसी भीड़ उमड़ी तो परेड ग्राउंड की क्षमता आधे से भी कम होने के कारण यह तय है कि पूरा देहरादून भीड़ से खचाखच भरा होगा और लोगों को धर्मपुर, सहारनपुर चौक, सहस्त्रधारा क्रॉसिंग और दिलाराम बाजार से पीछे रहकर ही प्रधानमंत्री का भाषण सुनना पड़ेगा। लेकिन, मैं जानता हूं ऐसा होगा नहीं। बीजेपी के लाख प्रयास के बावजूद इस बार की जनसभा में 20-25 हजार लोग जुटाना बड़ी समस्या होगी। खैर जितने भी लोग आएं, प्रधानमंत्री को तो अपनी बात कहनी ही है और यह तय है कि वह योजनाओं की झड़ी लगाएंगे ही।
मेरी दूसरी चिंता यह है कि कहीं प्रधानमंत्री एक बार फिर से ऑल वेदर रोड जैसी किसी योजना की घोषणा न कर दें, जो कि पहाड़ों को फिर से क्षत-विक्षत करने के रास्ते खोल दे। सच पूछा जाए तो अधिसंख्य लोगों के समझ में आज तक यह बात नहीं आई है कि उत्तराखंड में इतनी चौड़ी सड़कों की क्या आवश्यकता है। हालांकि भाजपा समर्थक एक वर्ग इस सड़क को विकास से जोड़ता है और इसका विरोध करने वालों को विकास विरोधी करार दिया जाता है। पिछले 7 सालों में विरोध करने वालों को विकास विरोधी, देश विरोधी और पता नहीं क्या-क्या विरोधी कहना भाजपा की परंपरा बन गई है। उससे अलग यदि सोचा जाए तो चार धाम परियोजना पहाड़ों के लिए और पहाड़ी जनमानस के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हुई है। जो नुकसान अभी नजर नहीं आ रहे हैं, वे भविष्य में प्रचंड रूप में सामने आने की पूरी आशंका है।
ऑल वेदर रोड के नाम पर पेड़ काटने से लेकर पहाड़ों को काटकर नदियों में डंप करने तक जो भी पर्यावरणीय नुकसान हुए हैं, उन्हें यदि अलग भी कर दिया जाए, तब भी यहां के जनमानस को भारी नुकसान हुआ है। कहना न होगा कि उत्तराखंड की आर्थिकी का एक बड़ा हिस्सा तीर्थयात्रा है। मैदानों से चलकर जब तीर्थयात्री केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री या पर्यटक स्थल जोशीमठ, औली, चोपता, फूलों की घाटी, हर्षिल, उत्तरकाशी आदि की तरफ चलते हैं तो पहाड़ी रास्तों पर धीरे धीरे चलते हुए, छोटे-छोटे पहाड़ी कस्बों और बाजारों में रुकते हुए, आगे बढ़ते हैं। जाहिर है कि इस पूरे रूट पर छोटे-छोटे दुकानदार, ढाबे वाले, गेस्ट हाउस या होटल चलाने वाले और अन्य तमाम लोगों को भी इससे आर्थिक लाभ मिलता है। लेकिन, जब फर्राटा वाली सड़कें तीर्थ यात्रियों को मिलेंगी तो जाहिर है वे ऋषिकेश से फर्राटा भर कर सीधे बदरीनाथ पहुंचेंगे और कुछ देर वहां रुक कर वापस चल पड़ेंगे। जिस यात्रा में तीन से चार दिन लगते थे, वह यात्रा एक दिन में ही पूरी हो जाएगी और इस तरह से कई लोगों के रोजगार पर मार पड़ेगी। लेकिन, यात्रियों को इससे कोई लाभ नहीं होने वाला। वे एक तरफ यात्रा के आनन्द से वंचित रह जाएंगे, दूसरी तरफ जो पैसा उनका बचेगा वह टोल, नाके या इसी तरह के दूसरे टैक्स में सरकार उनसे ले लेगी।
लगे हाथ इस परियोजना के पर्यावरणीय पक्ष पर एक सरसरी नजर डालना आवश्यक है। परियोजना के शुरुआती दौर से ही पर्यावरणविद् इसे पहाड़ों के लिए बड़ा खतरा बताते रहे हैं। लेकिन, भाजपा, उसका आईटी सेल और उसके समर्थक लगातार यह सवाल उठाने वालों को अपने चिर-परिचित अंदाज में गालियां देते रहे हैं। इन गालियों के बावजूद पर्यावरण को इस प्रोजेक्ट से होने वाला नुकसान कम नहीं हो गया है। यह बात इस बरसात में सब ने महसूस की है। ऋषिकेश से बदरीनाथ जाते हुए पहले करीब 10 से 15 स्लाइडिंग जोन होते थे, जो बरसात में सड़क बंद होने का कारण बनते थे। लेकिन, आज एक अनुमान के अनुसार ऐसे स्लाइडिंग जोन की संख्या करीब 60 हो चुकी है। बरसात में ही नहीं, अब गर्मियों और सर्दियों के सीजन में भी अवैज्ञानिक तरीके से काटी गई पहाड़ियां अचानक भरभरा कर गिर पड़ती हैं। हाल के महीनों में या कहें कि इस बरसात में करीब दर्जनभर लोग ऑल वेदर रोड के कारण मलबे की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। यही नहीं, हजारों की संख्या में जो पेड़ काटे गए हैं, नियमानुसार उसके बदले जंगल तैयार किए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। पहाड़ के मलबे से जिस तरह नदियां पाट दी गई हैं, उसका हिसाब भी आने वाले समय में नदियां खुद वसूलेंगी, और कई गुना ज्यादा ब्याज के साथ वसूलेंगी, इसकी पूरी संभावना है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में ऑल वेदर रोड के पर्यावरणीय आकलन के लिए बनाई गई रवि चोपड़ा समिति की शिफारिशें सरकार कूड़े में डाल चुकी है। फिलहाल आप प्रधानमंत्री का भाषण सुनिये। केवल सुनिए नहीं, यह भी ध्यान दीजिए की वे जो कह रहे हैं, वह कितना तथ्यात्मक है और यह भी देखिये कि वे जो कह रहे हैं, उसका नफा-नुकसान आने वाले समय में क्या होने वाला है।