कांवड़ यात्रा: जहर की फसल, सौहार्द्र के गुलाब
त्रिलोचन भट्ट
एक जाने-माने कवि हैं यश मालवीय। उनकी एक कविता है, जो उन्होंने हाल के दौर में लिखी है। पहले हम उनकी कविता की कुछ पंक्तियां देखते हैं-
दबे पैरों से उजाला आ रहा है
फिर कथाओं को खंगाला जा रहा है
धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है
कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा है
चुप्पियां हैं जुबां बनकर फूटने को
दिलों में गुस्सा उबाला जा रहा है।
कैसे दबे पैरों से उजाला आ रहा है और कौन है वो जो क्षितिजों पर सवेरा लिखने की कोशिश कर रहा है। इस वीडियो में हम उनके बारे में भी जानने का प्रयास करेंगे, जो दिलों में गुस्सा उबाल रहे हैं।
मानवीय गरिमा और संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार कर, हाल के दिनों में नफरत की खेती को खाद-पानी देने के प्रयासों के बावजूद, जिस तरह से जहरीली फसलों के बीच मोहब्बत के मुस्कराते गुलाब खिलते नजर आये हैं, इससे मुझे लगता है कोई न कोई तो है जरूर जो क्षितिजांे पर सवेरा लिख रहा है। और क्षितिजों पर सवेरा लिखा जाएगा तो जाहिर है उजाला तो आएगा ही, बेशक दबे पांव ही सही।
शुरुआत कांवड़ यात्रा से ही करते हैं। कांवड़ यात्रा की आड़ में दिलों में गुस्सा उबाले जाने के प्रयास निरंतर किये जा रहे हैं, लेकिन उसी रफ्तार से क्षितिजों पर उजाला भी लिखा जा रहा है। सालों से कांवड़ यात्रा निकलती रही है, लेकिन हाल के दौर में इस यात्रा का स्वरूप किस तरह बदल दिया गया, किस तरह इसकी धार्मिकता को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और उसमें साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया गया, वह अब किसी से छिपा नहीं है। कानफोड़ू लाउस्पीकर का शोर, कांवड़ खंडित हो जाने के बहाने लोगों से मारपीट, गाड़ियों और दुकानों को तहस-नहस करना, राह चलती महिलाओं पर छींटाकशी करना, ये सब शिव के नाम पर हो रहा है। भोले के नाम पर।
ऐसा नहीं है कि कांवड़ियों के निशाने पर सिर्फ मुसलमान हैं, बल्कि जहां मौका मिले ये हिन्दुओं को भी नहीं छोड़ते। मेरठ में जिस पेट्रोल पंप पर तोड़फोड़ की गई, उसका मालिक हिन्दू और कर्मचारी भी हिन्दू। उनकी गलती ये थी कि आम खाकर गुठली पेट्रोल पंप की तरफ फेंकने का उन्होंने विरोध किया था। रुड़की में जिस ई-रिक्शा को तोड़कर कबाड़ बना देने का वीडियो वायरल हुआ, वह भी एक गरीब हिन्दू का था। मुजफ्फरनगर में एक हिन्दू के ढाबे को खाने में प्याज डालने के नाम पर तहस-नहस कर दिया गया। और तो और लड़कियांे पर छींटाकशी करने का भी एक वीडियो सामने आया है। हालांकि सोशल मीडिया पर तैरने वाले किसी भी दूसरे वीडियो की तरह इस वीडियो की पुष्टि कर पाना भी संभव नहीं है। इस वीडियो में राह चलती महिलाओं पर उनके कपड़ों और थैले का रंग का चुटिया का साइज बताकर छींटाकशी की जा रही है।
लेकिन इसी बीच कुछ अच्छी खबरें भी आ रही हैं। मैं इन खबरों को दबे पांव उजाला आने की आहट मानता हूं। कांवड़ यात्रा में हिन्दू युवकों के साथ कुछ मुस्लिम युवक भी कांवड़ ले जाते नजर आ रहे हैं। एक वीडियो में देखा कि एक हिन्दू और एक मुसलमान मिलकर एक भारी कांवड़ ले जा रहे हैं। कुछ कांवड़िये हिन्दू मुसलमानों के बीच भाईचारा खराब करने के प्रयासांे की खिलाफत कर रहे हैं तो कहीं कांवड़िये मजारों पर मन्नत मांगते नजर आ रहे हैं। कहने का मतलब ये कि वे दिलों में गुस्सा उबालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन क्षितिजों पर सवेरा लिखने के प्रयास भी लगातार जारी हैं। वे कभी हेलीकॉप्टर से फूल बरसाकर तो कभी पांव धोकर कांवड़ियों के हौसले बढ़ा रहे हैं। उनकी इन्हीं हरकतों का नतीजा है कि कांवड़िये अब बात-बेबात किसी की भी पिटाई कर सकते हैं और किसी की भी गाड़ी तोड़ सकते हैं। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि पुलिस मौन है, शायद उसे ऐसा ही करने का आदेश दिया गया है।
इस बीच उत्तराखंड पुलिस के मुखिया अभिनव कुमार का एक बयान आया है। वे कह रहे हैं कि हुड़दंगी कांवड़िये नहीं हो सकते हैं। हम ये बात लगातार कई सालों से कह रहे हैं। लेकिन, ऐसा कहने में हमें गालियां दी जाती हैं। हिन्दू विरोधी करार दिया जाता है। पाकिस्तान जाने की सलाह दी जाती है और हमारे हिन्दू होने पर सवाल भी उठाये जाते हैं। अब जब डीजीपी साहब ने मान ही लिया है कि ये कांवड़िये नहीं हुड़दंगी हैं तो हम उम्मीद करेंगे के इन हुड़दंगियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो।
अब जरा ये खबर देखिए। उम्मीद के विपरीत अखबार ने ये खबर उठाई, साधुवाद। इस पर किसी का ध्यान नहीं है। हरिद्वार के उद्योग पूरी तरह बंद हैं। कर्मचारी कारखानों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कच्चा माल लेकर आने वाले ट्रक जहां के तहां फंसे हुए हैं। स्कूल भी हरिद्वार में बंद हैं और लोग भी अपने घरों में कैद हैं। खबर कह रही है कि पिछले 4 दिनों से खाद्यान्न, रसोई गैस और अन्य जरूरी चीजें देहरादून नहीं पहुंची हैं। फिलहाल पुराने स्टॉक पर देहरादून का काम चल रहा है। लेकिन कांवड़ यात्रा अभी कुछ दिन और चलनी है। ऐसे में देहरादून के सामने बड़ी समस्या खड़ी होने की पूरी संभावना है। पर सरकार का क्या? सरकार तो कुछ दिनों बाद अपनी पीठ थपथपाएगी कि एक बार फिर हरिद्वार आने वाले कांवड़ियों की संख्या नये रिकॉर्ड का छू गई है।
अंत में एक बार फिर यश मानवीय की कविता पर लौटता हूं। गुस्सा उबल रहा है। ये जो कुछ हो रहा है, वह अब बहुत ज्यादा नहीं चलने वाला। आज न सही कल सही, चुप्पियां जुबां बनकर फूटेंगी जरूर। और तब धुंध में गुम प्रेम, सौहार्द और शांति का चेहरा हम देख पाएंगे।