एसएसपी डांट रहे, एमएलए गाली दे रहे, उत्तराखंड में सब चंगा सी
त्रिलोचन भट्ट
उत्तराखंड में सब चंगा है। सत्ताधारी बीजेपी के विधायक लोगों को फोन पर भद्दी गालियां दे रहे तो एसएसपी सवाल कर रहे कि किसने कह दिया कि अधिकारी पत्रकारों के सवालों का जवाब देेंगे। बहरहाल विधायक साहब के लिए तो क्या कहा जा सकता है, लेकिन एसएसपी साहब को उनकी सेवा नियमावली तो याद दिलानी ही पड़ेगी। हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि एसएसपी साहब ने जिस पत्रकार को हड़काया, वह ब्लैकमेलर है। हो सकता है यह बात सही भी हो, लेकिन हम तो यहां सिर्फ उसकी बात करेंगे, जो एसएसपी साहब कहते हुए सुने जा रहे हैं। विधायक साहब की टेलीफोन पर हो रही बातचीत के वायरल ऑडियो के बारे में भी उनके समर्थक यही कह रहे हैं। यहां भी हम कहना चाहते हैं कि विधायक साहब हो सकता है बहुत ईमानदार हों, बहुत बेहतरीन नेता हों, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें गाली देने का लाइसेंस मिल गया है।
मुझे लगता है कि शुरूआत पुलिस अधिकारी से ही करनी चाहिए। साहब ऊधमसिंह नगर जिले के एसएसपी हैं। नाम है मणिकांत मिश्रा। पीपीएस से आईपीएस प्रमोट हुए हैं। मामला ये है कि 25 नवंबर को रुद्रपुर में पुलिस ने यातायात चौपाल लगाई। इस चौपाल में कुछ लोगों को सम्मानित भी किया गया। सम्मानित किए गए लोगों में से एक के कथित रूप से आपराधिक प्रवृत्ति का भी था। इस पर एक पत्रकार ने एसएसपी से सवाल पूछ लिया। कैमरे के सामने तो एसएसपी साहब इस सवाल का शांत भाव से जवाब दे दिया। लेकिन कैमरा बंद होते ही अपने असली रूप में आ गये। बेहद आक्रामक हो कर बोले- आप नहीं पूछेंगे सवाल। आप के कहने से सवाल का जवाब दूंगा? आप जो पूछोगे, मैं जवाब दूंगा? ये किसने कह दिया कि पत्रकार सवाल पूछेगा तो अधिकारी जवाब देंगे? एसएसपी साहब को नहीं पता था, लेकिन एक कैमरा उस समय भी उन्हें रिकॉर्ड कर रहा था। वीडियो में आवाज धीमी है, पर आप सुन पाएंगे, ऐसी उम्मीद है।
एसएसपी साहब, जैसे कि मैंने कहा, प्रमोट होकर आईपीएस बने हैं। हो सकता है, सेवा नियमावली के बारे में जानने का मौका न मिला हो। तो सीपीआई माले के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने अपने ब्लॉग नुख्ता-ए-नजर पर एसएसपी साहब की जानकारी के लिए उनकी सेवा नियमावली लिख दी है।
सेवा आचरण नियमावाली के बिंदु संख्या 3 (1ए) (पअ) में अखिल भारतीय सेवाओं के हर अधिकारी से आचरण में जवाबदेही और पारदर्शिता की अपेक्षा की गयी है। बिंदु संख्या 3 (2बी) (प) में लिखा है कि अखिल भारतीय सेवाओं का हर सदस्य संविधान की सर्वाेच्चता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करेगा। तो सवाल पूछना और उसका जवाब देना दोनों ही संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए जरूरी है। सेवा आचरण नियमावली का अनुच्छेद 19 (1) (ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में देश का उच्चतम न्यायालय, कई मामलों में कह चुका कि इसमें जवाब पाने का अधिकार भी शामिल है।
1975 में उत्तर प्रदेश बनाम राजनारायण मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सार्वजनिक हित के मामलों में हर नागरिक को सूचना पाने और उसे प्रसारित करने का अधिकार है। लेकिन ये बातें शायद एसएसपी साहब की जानकारी में नहीं होंगी, इसलिए उन्हें पढ़ लेनी चाहिए और जान लेनी चाहिए।
चलिए जरा संस्कारी विधायक महोदय की बात भी कर लेते हैं। मामला ये था कि हाल ही में मरचुला में हुए सड़क हादसे के बाद राज्य आंदोलनकारी शंभू लखेड़ा ने सल्ट के बीजेपी विधायक महेश जीना को फोन करके इस हादसे के बाद उनकी तरफ से अपेक्षित मदद न मिलने की बात कही थी। इस पर विधायक साहब ऐसे भड़के कि साला, हरामजादा, तेरा बाप मर गया था क्या? तेरा मुर्दा मर गया था। जूते मारूंगा, तेरी मां बीप, तेरी बहन बीप जैसी शब्दावली पर उतर आये। टेलीफोन करने वाले शंभु लखेड़ा जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वीडियो के ज्यादातर हिस्से में जी हां, गलती हो गई, कहते रहे। हालांकि उन्होंने वीडियो विधायक साहब को यह धमकी जरूर दी है कि उनकी यह बातचीते सीएम धामी को भेज रहा हूं। इस पर विधायक कहते सुने जा सकते हैं कि तुझे जहां भेजना हो, भेज दे, तेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाऊंगा। लखेड़ा यह भी कहते सुने जा सकते हैं कि जो मर्जी हो कर लेना और यह भी कह रहे हैं कि सिर्फ दो साल के विधायक हो आप? इस पर विधायक जीना पहले से ज्यादा भड़क जाते हैं और तेरा बाप मर गया था, भो..ड़ी वाले जैसी गाली निकालते हैं। जूते मारने की बात तो विधायक साहब हर दूसरे वाक्य में सुनाई दे रहे हैं।
निष्कर्ष ये है कि पहाड़ के लोग जिस भाजपा के पीछे मरे जा रहे हैं, उसके विधायक लोगों के साथ किस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन किया क्या जा सकता है? जब हमने मान लिया है कि वो वाले तो विष्णु भगवान के अवतार हैं और उनके नाम पर किसी जानवर को भी टिकट मिलेगा तो हम उसी को वोट दे देंगे, तो हमें ऐसी गालियां सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इस बीच कुछ लोग फिर मुझे ज्ञान देंगे कि मुझे सिर्फ बीजेपी के खिलाफ न बोलकर खबरों की तुलना करनी चाहिए, जिससे कि मैं निष्पक्ष पत्रकार की पदवी प्राप्त कर सकूं। ऐसे महानुभावों से मेरा निवेदन है कि विपक्षी पार्टी के किसी विधायक का इस तरह की गाली गलौच वाला कोई वीडियो मेरे पास नहीं है, इसलिए तुलना करना संभव नहीं है। तो आपने निष्पक्ष पत्रकार होने का जो सर्टिफिकेट मेरे नाम पर काट रखा है, उसे फिलहाल अपने पास ही रखिए। और यदि विपक्षी पार्टी के किसी विधायक को इस तरह का वीडियो आपके पास है तो कृपया भेज दीजिए।