संसद में धुआं-धुआं: कैसे लग गई सुरक्षा में सेंध!

त्रिलोचन भट्ट

 

तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तिरी रहबरी का सवाल है। बहरों को सुनाने के लिए धमाके करने पड़ते हैं, यह बात अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त है। शहीदे आजम भगत सिंह ने भी ये बात कही थी। लेकिन सवाल तो तेरी सुरक्षा व्यवस्था का है, बता जिस नये संसद भवन के लिए दावा किया गया था कि वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, उसकी सुरक्षा व्यवस्था कहां चली गई? इस वीडियो में संसद पर हुए दूसरे हमले पर बात करेंगे। संसद की सुरक्षा की बात करेंगे और यह जानने का प्रयास भी करेंगे कि इस हमले का मकसद क्या हो सकता है।

भगत सिंह ने कहा था कि बहरों के कानों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए धमाके करने पड़ते हैं। इस बार संसद में जिन दो युवकों ने हमला किया और जिन दो ने संसद के बाहर रंगीन धुंआ उड़ाया वे भी करीब-करीब ऐसा ही कह रहे थे। जिस महिला को गिरफ्तार किया गया, वह बेरोजगारी की बात कर रही थी, वह मणिपुर में महिलाओं पर हिंसा की बात कर रही थी। वह सरकार की तानाशाही की बात कह रही थी। वंदे मातरम और भारत माता के जय भी बोल रही थी। संसद के भीतर और बाहर धुंआ उड़ाने वाले चारों गिरफ्तार किये गये लोगों के हावभाव और अब तक हुई पुलिस पूछताछ में यह तो साफ है कि वे न आतंकवादी हैं और न उनका इरादा किसी को नुकसान पहुंचाना था। ठीक भगत सिंह और उनके साथियों की तरह। अब तक की जानकारी यह भी कहती है कि वे किसी संगठन के लोग नहीं हैं, हां सरकार विरोधी धरने प्रदर्शनों में भाग लेते रहते थे। सरकार का विरोध करना धरने-प्रदर्शन करना एक बात है, लेकिन संसद में घुस कर अफरा-तफरी की स्थिति पैदा करना दूसरी बात।


ऐसा लगता है कि चारों गिरफ्तार किये गये लोग सबसे ज्यादा परेशान बेरोजगारी से हैं। और बेरोजगारी ेके कारण निराश होकर ही उन्होंने यह कदम उठाया। पुलिस जांच के अनुसार 5 लोगों ने यह योजना बनाई थी। सभी का इरादा संसद के अंदर घुसना था। पहले वे सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के संपर्क में आये और फिर संसद में घुसने से पहले गुड़गांव में मीटिंग की। दो युवक संसद में दाखिल हो गये। एक महिला और तीन युवकों ने संसद के बाहर ही रंगीन धुआं उड़ाने की योजना बनाई। इनमें एक की गिरफ्तारी अभी नहीं हो पाई है। नीलम हरियाणा की रहने वाली है। उसके पास आधा दर्जन से ज्यादा डिग्रियां हैं। लखनऊ का सागर शर्मा ई रिक्शा चलाता है। मैसूर का मनोरंजन जो संसद में उछलकूद करता नजर आया, वह कई प्राइवेट कंपनियों में काम करने के बाद इन दिनों बेरोजगार है और माता-पिता के साथ खेती करता है। महाराष्ट्र का अमोल शिंदे फौज में भर्ती होना चाहता है इन दिनों मजदूरी कर रहा है।

संसद की सुरक्षा के सवाल पर बात करने से पहले इस बात पर हमें इस बात पर जरूर सोचना चाहिए कि क्या बेरोजगारी की स्थिति इतनी खराब हो चली है कि बेरोजगार युवा संसद तक में घुसने और वहां अफरा-तफरी के हालात पैदा करने की हद तक पहुंच गये हैं? ये चारों लोग देश के अलग-अलग हिस्सों के हैं। सभी अपने-अपने घरों से बहाने बनाकर दिल्ली आये थे। इस घटना ने यह तो साफ कर ही दिया है कि सरकार जिस तरह से सब कुछ हराभरा दिखाने की कोशिश कर रही है, वैसा है नहीं। धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना अलग बात है, लेकिन रोजगार देना अलग। घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि नौकरी करने वाले, पेंशन पाने वाले और खाये-पीये-अघाये लोग बेशक आज भी मोदी-मोदी का मंत्र जप रहे हों, अनुच्छेद 370 हटाने और राम मंदिर के निर्माण को मोदी जी की बहुत बड़ी सफलता मान रहे हों, ईवीएम पर जमकर कमल खिला रहे हों, लेकिन वास्तव में 370 हटाने और राम मंदिर बनाने से पेट के लिए अनाज और शरीर के लिए कपड़ा नहीं मिलने वाला है। इसके लिए आपको रोजगार देना होगा। बिना रोजगार के हताश और निराश युवा तमाम संभावित खतरों की परवाह किये बिना संसद तक घुसने का दुस्साहस कर सकता है। हालांकि यह सवाल भी अपनी जगह बना हुआ है कि बेरोजगारी से जूझ रहे इन साधारण से दिखने वाले युवाओं ने ऐसी असाधारण साजिश कैसे रची कि चार सुरक्षा घेरों को पार कर धुआं उड़ाने वाला लड्डू लेकर संसद तक पहुंच गये।

कुछ और सवाल, संसद में घुसे युवकों के संसद में जाने के पास बीजेपी के सांसद की सिफारिश पर बनाये गये थे। जरा सोचिये, यदि ये पास बीजेपी सांसद के बजाय इंडिया गठबंधन में शामिल किसी पार्टी के सांसद की सिफारिश पर बने होते तो इस वक्त देश में क्या हो रहा होता, क्या बहस चल रही होती और टीवी अखबार वाला मीडिया किस तरह से तांडव कर रहा होता? दूसरी बात यदि इन लोगों के नाम सागर, मनोरंजन, अमोल और नीलम की जगह कुछ और होते तो इस वक्त देश में क्या हो रहा होता? शुक्र है कि इनके नाम वैसे नहीं हैं और इनके पास बीजेपी सांसद ने बनवाये थे। किसी इंडिया गठबंधन वाले सांसद ने नहीं।

अब जरा संसद की सुरक्षा पर बात करते हैं। 13 दिसंबर 2001 में संसद पर बड़ा हमला हुआ था। वह एक आतंकवादी हमला था। 9 लोग शहीद हो गये थे। 13 दिसंबर 2023। यानी ठीक 22 वर्ष बाद फिर हमला हो गया। एक बात जो कहनी तो नहीं चाहिए, लेकिन सोचने पर मजबूर जरूर करती है। 70 साल तक कुछ न करने वाली पार्टी ने संसद पर हमले के मामले में भी कुछ नहीं किया। कांग्रेस के कार्यकाल में कभी संसद पर हमला नहीं हुआ। लेकिन 2001 में बीजेपी के सत्ता में रहते संसद पर आतंकवादी हमला हो गया और 22 वर्ष बाद फिर से हमला हो गया। असलियत सामने आने तक हम इसे बेरोजगारों का हमला ही कहेंगे। ये हमला भी सबसे मजबूत बीजेपी सरकार के शासन काल में ही हुआ। और आप कह रहे हैं कि देश सुरक्षित हाथों में है? नये संसद भवन के बारे में कितने दावे किये गये थे? कहा गया था कि यह संसद भवन इतना सुरक्षित है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाने वाला यह नया-नवेला संसद भवन अपने दूसरे ही सत्र में इतनी बड़ी सुरक्षा चूक का गवाह बन गया, यह चिन्ता की बात है।


इस घटना से जुड़े कुछ और चित्र हैं, जो शर्मनाक है। ये माननीयों और मीडिया की गरिमा का धूमिल करने वाले हैं। संसद में जब युवक कूदा तो होना तो यह चाहिए था कि बाज की जैसी फुर्ती से कमांडो उसेें दबोच लेते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कई मिनट तक वहां गली नुक्कड़ जैसा नजारा रहा। कुछ सांसदों ने युवक को पकड़ लिया और दे दनादन उसकी पिटाई शुरू कर दी। हमारा लोकतंत्र, हमारी न्याय व्यवस्था किसी भी अपराधी की इस तरह की पिटाई की इजाजत नहीं देते। दूसरा वीडियो संसद के बाहर से आया। जहां पत्रकारों के हाथ वह पीले रंग का तथाकथित बम लग गया और ऑन एयर पत्रकारों में उसे हथियाने के लिए के लिए छीना-झपटी शुरू हो गई।

दरअसल हमें ऐसा ही सुरक्षित (इंनवर्टेड कॉमा में) सुरक्षित, संसद भवन, ऐसी ही संसद की सुरक्षा व्यवस्था, ऐसा ही गरिमामय ‘गरिमामय’ बर्ताव करने वाले सांसद और ऐसा ही गंभीरता से काम करने वाला मीडिया चाहिए था, जो हमें मिल गया है। अब चाहें तो हम खुद को विश्व गुरु घोषित कर सकते हैं।

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