चारधाम मार्ग पर कचरे के ढेर
सफाई व्यवस्था नगर पंचायतों के भरोसे छोडऩे पर एनजीटी नाराज
त्रिलोचन भट्ट
उत्तराखंड सरकार एक बार फिर से राज्य के चारों धामों में आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या का नया रिकॉर्ड बनाने मे लिए जुट गई है। पिछले वर्ष इन धामों में करीब 44 लाख तीर्थयात्री पहुंचे थे। इस बार संख्या 50 लाख या उससे भी ज्यादा पहुंचाने की प्रयास है। लेकिन, इस प्रयास के बीच कई जरूरी बातों पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। मसलन उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थिति इन धामों में लगातार इतनी बड़ी संख्या में लोग पहुंचेंगे तो हिमालय की सेहत पर क्या असर पड़ेगा। यानी कि इन धामों की कैरिंग कैपेसिटी की तरफ ध्यान नहीं दिया जा हर है। दूसरा मसला यात्रा मार्गों पर पैदा होने वाले कचरे का है। चारधाम यात्रा रूट पर किसी भी नगर या कस्बे में कचरा निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। इन नगरों को कचरा या तो नदियों में बहाया जा रहा है, या जलाया जा रहा है। दोनों स्थितियां पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
वर्ष 2022 में रिकॉर्ड तोड़ तीर्थयात्रियों के चारधाम पहुंचने पर अपनी पीठ खुद थपथपाने वाली राज्य सरकार एक बार फिर से नया रिकॉर्ड बनवाने की फिराक में है। सरकार की ओर से अब तक कई इस तरह के बयान आ चुके हैं। 18 फरवरी को रजिस्ट्रेशन ऐप खुलने के बाद अब तक बदरीनाथ और केदारनाथ के लिए 2 लाख 67 हजार से ज्यादा तीर्थयात्रियों द्वारा रजिस्ट्रेशन किये जाने को भी बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन इस बीच नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने चार धामों के साथ हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी में बिखरे कचरे पर कड़ी नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार के वेस्ट मैनेजमेंट पर कई सवाल खड़े किये हैं।
बुनियादी ढांचा तक नहीं
उत्तराखंड के चार धामों के साथ ही हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी मार्ग पर वेस्ट मैनेजमेंट का आकलन करने के लिए एनजीटी ने एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर जो टिप्पणियां की हैं, वे राज्य सरकार के दावों और काम-काज के तरीके पर कई सवाल खड़े कर रही हैं। कमेटी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस मार्गों में वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्थाएं बेहद कम हैं, यहां तक के वेस्ट मैनेजमेंट का बुनियादी ढांचा भी यहां उपलब्ध नहीं है और यात्रियों की संख्या को देखते हुए पर्याप्त संख्या में टॉयलेट भी नहीं हैं।
अगस्त में बनी थी कमेटी
एनजीटी ने पिछले वर्ष अगस्त में सीपीसीबी, सेन्ट्रल एनवायर्नमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज मिनिस्टरी, स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायर्नमेंट के विशेषज्ञों की कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को चारधाम यात्रा मार्ग के साथ ही हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी के ट्रेक पर वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम का आकलन करके तथ्यात्मक रिपोर्ट देने के लिए कहा था। इस कमेटी ने इसी महीने एनजीटी को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
वेस्ट मैनेजमेंट में गंभीर चूक
रिपोर्ट आने के बाद एनजीटी के उत्तराखंड के चारधाम मार्गों पर वेस्ट मैनेजमेंट ठीक से न कर पाने को प्रशासन की गंभीर चूक माना है। यात्रा मार्गों पर खच्चरों की लीद और प्लास्टिक कचरा फैला होने पर नाराजगी जताते हुए वेस्ट मैनेजमेंट की पूरी जिम्मेदारी जिला नगर पंचायतों पर छोड़ देने को गैर जिम्मेदार रवैया माना है और इस मामले में राज्य सरकार के सीधे हस्तक्षेप को जरूरी बताया है।
दो महीने में बनाएं रोड मैप
एनजीटी ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर चार धाम मार्गों पर वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रोड मैप बनाने के लिए कहा है। इसके साथ ही कचरा एक ही स्थान पर फेंकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने और इस काम में आम नागरिकों का सहयोग लेने के लिए भी कहा गया है।
आग लगाकर कचरा निस्तारण
चारधाम यात्रा मार्ग वाले नगरों में कहीं भी कचरा निस्तारण करने की कोई व्यवस्था नहीं है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पिछले महीने देव प्रयाग से लेकर जोशीमठ तक यात्रा के दौरान पाया कि इन नगर का कचरा अलकनन्दा के किनारे डंप किया जा रहा है। जोशीमठ और कर्णप्रयाग पहुंचने से पहले तीर्थ यात्रियों को स्वागत कचरे के ढेर करते हैं। जोशीमठ में इस कचरे में हमेशा आग लगी दिखाई देती है। कर्णप्रयाग में भी कचरा अलकनन्दा में फेंका जा रहा है। पहले कचरे का एक बड़ा हिस्सा सीधे नदी के बहाव में मिल जाता था, अब बीच में एक दीवार बना दी गई है। देवप्रयाग में कचरा एक गहरी खाई में अलकनन्दा के किनारे फेंका जाता है और मौका मिलते ही इस कचरे में आग लगा दी जाती है।