हल्द्वानी हिंसा: फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट ने उठाये गंभीर सवाल
त्रिलोचन भट्ट
हल्द्वानी के बनभूलपुरा में हिंसा उकसाने के लिए क्या एक खास समुदाय का इस्तेमाल किया गया था? क्या थाने पर हमला करने वाले लोगों ने एक मुस्लिम शादी समारोह पर भी हमला किया था? नगर निगम कमिश्नर पंकज उपाध्याय ट्रांसफर हो जाने के बाद भी इस कार्रवाई में इतनी रुचि क्यों ले रहे थे? क्या पुलिस ने 8 फरवरी को एक हजार से दो हजार राउंड फायर किये थे? क्या फहीम की हत्या संजय सोनकर नामक व्यक्ति ने की? क्या नैनीताल की डीएम वंदना सिंह ने झूठ बोला? ये तमाम सवाल मैं नहीं उठा रहा हूं, बल्कि मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थान ए पी सी आर की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में ये बातें पूरे दावे के साथ कही गई हैं।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स संस्था की और से हल्द्वानी के बनभूलपुरा हिंसा के मामले पर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट का शीर्षक है-बुलडोजिंग पीस: स्टेट वॉइलेंस एंड अपेथी इन मुस्लिम सेटलमेंट्स ऑफ हल्द्वानी। हिन्दी में अनुवाद कुछ इस तरह से होगा- शांति का ध्वस्तीकरण: हल्द्वानी की मुस्लिम बस्तियांे में सरकारी हिंसा और उदासीनता। इस रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले तथ्य दिये गये हैं। मसलन- नगर निगम के सफाई कर्मचारियों के माध्यम से वाल्मीकि समुदाय के लोगों को बुलाया गया और मुस्लिम समुदाय के लोगों को उकसाया गया। रिपोर्ट के अनुसार इस हिंसा में 7 लोगों की मौत हुई। 6 की मौत पुलिस की गोली से हुई, जबकि एक व्यक्ति फहीम की संजय सोनकर नामक व्यक्ति ने हत्या की। संजय सोनकर को इस रिपोर्ट में कट्टर हिन्दुत्ववादी और मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाने वाले व्यक्ति बताया गया है।
23 पन्नों की इस रिपोर्ट के पेज नंबर 8 पर पूरी घटना का सारांश दिया गया है। इसमें दी गई जानकारी के अनुसार हल्द्वानी नगर निगम ने मरियम मस्जिद और अब्दुल रज्जाक जकारिया मदरसे को तोड़ा। इस दौरान झड़पें हुई। एक भीड़ ने डेढ़ किमी दूर थाने पर हमला किया। कई वाहनों को आग लगा दी गई। सरकार की ओर से देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गये, परिणामस्वरूप 7 लोगों की मौत हुई। ट्रांसफर होने के बावजूद नगर निगम के कमिश्नर पंकज उपाध्याय हल्द्वानी में डटे रहे और इस तोड़फोड़ के दौरान मौके पर मौजूद रहे। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किये जाने की भी बात इस रिपोर्ट में कही गई है। हल्द्वानी की घटना को सुनियोजित बताते हुए इसमें मीडिया की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया है। रिपोर्ट कहती है कि प्रशासन एक खास तरह का नेरेटिव बनाने के लिए मीडिया को अपने साथ ले गया था। मौके से मीडिया की इस खास तरह की रिपोर्टिंग के कारण में लोग नाराज हुए।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को उकसाने के लिए गांधीनगर बस्ती के वाल्मीकि समुदाय के लोगों को लाया गया था। वे जय श्रीराम के नारे लगाकर बर्बरता कर रहे थे। यह भी कहा गया है कि जिन लोगों ने थाने पर हमला किया और कई वाहनों को आग लगाई, उन्हीं लोगों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की एक शादी पर भी हमला किया। रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि यदि थाने पर हमला करने वाले लोग मुस्लिम समुदाय के थे तो उन्होंने अपने ही समुदाय की शादी पर हमला क्यों किया?
रिपोर्ट मोटे तौर पर तीन हिस्सों में है। पहला हिस्सा है हिंसा से पहले। इस हिस्से में उत्तराखंड राज्य में पिछले कुछ महीनों से मुस्लिम समुदाय पर किये जा रहे कथित हमलों का जिक्र है। इसमें लव जेहाद, लैंड जेहाद, व्यापार जेहाद जैसी काल्पनिक घटनाओं को तूल देने की बात कही गई है। लव जेहाद और लैंड जेहाद को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बयान का भी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि मुस्लिम समुदाय को जिस तरह से निशाने पर लिया जा रहा है, बनभूलपुरा की घटना भी उसी का एक हिस्सा है। साम्प्रदायिक धु्रवीकरण में सभी जगह एक जैसा पैटर्न होने की बात भी कही गई है।
नैनीताल की डीएम वंदना ंिसंह ने दावा किया था के तोड़फोड़ की कार्रवाई करने से पहले मौलवियों और मौजिज लोगों को फोन किया गया था, लेकिन सभी के फोन बंद थे। रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के हवाले से इस दावे को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि 80 लोगों के फोन एक साथ बंद नहीं हो सकते। इस खुलासे के बाद सोशल मीडिया पर हैशटेग अरेस्ट वंदना सिंह लगातार ट्रेेंडिंग में है।
रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा है हिंसा के दौरान। इस भाग में कहा गया है कि पहले नगर के कर्मचारी और सफाई कर्मचारी दो बुल्डोजर लेकर आये। बाद में कुछ और बुल्डोजर मंगवाये गये। लोगों ने मस्जिद तोड़ने का विरोध किया तो महिलाओं तक के साथं दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें घसीटा गया। दस्ते में मौजूद सफाई कर्मचारियों के माध्यम से वाल्मीकि समुदाय के लोगों को बुलाया गया और पुलिस के साथ मिलकर उन्होंने हमला किया। इन लोगों ने अपना चेहरा ढंका हुआ था और पथराव कर रहे थे। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पुलिस ने एक हजार से दो हजार राउंड फायर किये, हालांकि मीडिया ने केवल 350 राउंड ही बताये। 7 से 9 बजे तक क्षेत्र में अफरा-तफरी का माहौल रहा और आगजनी होती रही।
तीसरा भाग है हिंसा के बाद। इसमें कहा गया है कि 10 फरवरी को पुलिस ने छापेमारी शुरू की। यह छापेमारी 11 फरवरी तक होती रही। इस दौरान 300 घरों को निशाना बनाया गया। लोगों के साथ क्रूरता की गई। महिलाओं और बच्चों तक की पिटाई की गई। लोगों के घरों का सामान तोड़ा गया। कई लोग बचने के लिए गौला नदी के तरफ भागे। 10 फरवरी की इस घटना के बाद ही यह बात सोशल मीडिया पर आई तो नैनीताल पुलिस ने अपने फेसबुक पेज पर इन खबरों को भ्रामक बताकर कार्रवाई करने की बात कही थी। साथ ही यह भी कहा था कि कुछ लोग समाज में संवेदनशीलता पैदा कर रहे हैं। यह बात अलग है कि संवेदनशीलता खराब नहीं बल्कि अच्छी बात होती है। रिपोर्ट के अनुसार प्रशासन ने करीब 15 किमी दूर एक स्कूल को डिटेंशन सेंटर बनाया है वहां बड़ी संख्या में लोगों को रखा गया है। हालांकि एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार प्रशासन ने इससे इंकार किया है।
रिपोर्ट के अनुसार फैक्ट फाइंडिंग टीम 14 फरवरी को हल्द्वानी गई थी। उस दिन तक भी वहां हालात सामान्य नहीं थे। लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। टीम को लोगों के साथ बातचीत करने भी भी परेशानियांे का सामना करना पड़ा।