संसद में गडकरी बोले, कंपनी पर मुंह नहीं खोले
17 दिन तक हम सबकी सांसें सीलक्यार की सुरंग में अटकी रही। अब जा मजदूर सुरंग से बाहर आ गए हैं, सरकार ने वाहवाही लूटने की सारी कवायदें कर दी हैं, बल्कि वाहवाही लूट भी ली है, तो भी सवाल बाकी हैं कि नियमों का पालन न करने वाली सुरंग निर्माता कंपनी के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई? ये सवाल संसद में भी आया। कैसा गोलमाक जवाब आया, पढिए इंद्रेश मैखुरी का लेख
उत्तरकाशी में धरासू-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का मामला संसद तक जा पहुंचा. हैरत की बात यह है कि संसद में भी केंद्र सरकार का रवैया वही है, जो संसद के बाहर था.
सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन तक 41 मजदूर फंसे रहे. उन्हें निकालने के अभियान के दौरान सुरंग बनाने वाली कंपनी की लापरवाही उजागर हुई. साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ कि ऐसी आपदाओं से निपटने की कोई पूर्व तैयारी न तो सुरंग बना रही कंपनी के पास थी और ना ही केंद्र व उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन तंत्र के पास कोई त्वरित व्यवस्था थी. आखिरी में भले ही रैट माइनर्स ने लगभग चौबीस घंटे के अंदर, सुरंग में फंसे मजदूरों तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की, लेकिन उससे पहले 16 दिन तक तो सारा बचाव अभियान बेहद फुर्सत के साथ कछुआ रफ्तार से चल रहा था.
12 नवंबर की सुबह मजदूरों के सुरंग में फँसने के बाद से लेकर अब तक लगातार यह सवाल उठाया जाता रहा है कि सुरंग हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है. सुरंग हादसे के लिए सुरंग निर्माता कंपनी- नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड और एनएचआईडीसीएल के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग लगातार की गयी. लेकिन आज तक इस मामले में केंद्र और उत्तराखंड सरकार खामोशी ही ओढ़े हुए हैं. जिस समय बचाव अभियान चल रहा था, उस समय कार्यवाही के सवाल पर केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अभी सारा ध्यान सिर्फ रेसक्यू पर है, बाकी बातें बाद में होंगी.
17 दिन बाद जब रेसक्यू हो गया तो सारा ध्यान रेसक्यू का जश्न मनाने और उसको राजनीतिक तौर पर भुनाने पर केंद्रित हो गया. कार्यवाही की बात फिर नैपथ्य में सरका दी गयी.
अब यह सवाल संसद में पूछा गया है तो उसका भी जो उत्तर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा दिया गया है, उसे देख कर लगता है कि कार्यवाही की बात तो छोड़ दीजिये, कंपनी का नाम तक सरकार अपने मुंह पर नहीं लाना चाहती !
कंपनी की खामी न बतानी पड़े, इसके लिए नितिन गडकरी जी ने जो सवाल का जवाब ही गोलमोल कर दिया.
राज्य सभा में तृणमूल कॉंग्रेस के सांसद नदीमउल हक ने बहुत सीधा सवाल पूछा :
“(ख) क्या सरकार ने इस बात की जांच की है कि एनईसीएल ने बचाव मार्ग का निर्माण क्यूं नहीं किया,जबकि सुरंग निर्माण में यह आवश्यक होता है ”
इसके जवाब में केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जो कहा, वो देखिये :
(ख) धरासू-यमुनोत्री राजमार्ग (रारा-134) पर सिल्क्यारा द्वि-दिशात्मक सुरंग में वाहन क्रॉसओवर के लिए 565 मीटर के औसत अंतराल पर निकास द्वार के साथ-साथ कैरिजवे के केंद्र में सेपरेशन वॉल और 300 मीटर के औसत अंतराल पर आपातकालीन स्थिति के दौरान भागने के उद्देश्य से पैदल यात्री क्रॉस मार्ग का प्रावधान किया गया है।”
मंत्री जी के जवाब से साफ है कि जो पूछा गया, उन्होंने, उसका जवाब दिया ही नहीं. सवाल तो यह था कि एनईसीएल यानि सुरंग बनाने वाली कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ने सुरंग में बचाव मार्ग नहीं बनाया, क्या सरकार ने इस बात की जांच की. जवाब में मंत्री जी ने सरकार द्वारा जांच की गयी या नहीं, इसके बारे में एक शब्द नहीं कहा ! मंत्री जी ने यह भी नहीं बताया कि सुरंग में बचाव मार्ग होना चाहिए था या नहीं. उन्होंने केवल एक घुमावदार जवाब दे दिया, जिससे केवल प्रश्न का जवाब देने की औपचारिकता पूरी हुई, सवाल का जवाब नहीं मिला !
संसद में इस गोलमोल जवाब के जरिये नितिन गडकरी जी ने उस अदृश्य एवं गुप्त आचार संहिता का ख्याल रखा, जिसमें यह प्रावधान है कि चाहे कुछ भी हो जाये, सुरंग निर्माण में ना तो किसी लापरवाही का जिक्र करना है और ना ही सुरंग बनाने वाली कंपनी- नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड का नाम ही अपनी जुबान पर लाना है !
नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड का नाम लेने से तक परहेज किए जाने से यह स्पष्ट है कि सुरंग निर्माण के दौरान हुई, उन तमाम लपरवाहियों को केंद्र की मोदी सरकार ढकना चाहती है, जिनकी वजह से 41 मजदूर, 17 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे.
सुरंग में बचाव मार्ग न होने के मामले में जो प्रश्न बीते रोज राज्य सभा में पूछा गया, वह प्रश्न तो पहले दिन से पूछा जा रहा है कि सुरंग बनाने वाली कंपनी ने एस्केप रूट क्यूं नहीं बनाया ? केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जब सिलक्यारा आए तो उनसे पत्रकारों ने एस्केप रूट के बारे में पूछा तो उन्होंने पत्रकारों से कहा कि इस समय तकनीकी सवाल न पूछें !
यह एस्केप रूट का मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि यदि सिलक्यारा की सुरंग में वह एस्केप रूट होता तो संभवतः 41 मजदूरों को 17 दिन तक सुरंग के भीतर कैद नहीं रहना पड़ता. यह खुलासा पहले ही हो चुका है कि इस सुरंग को स्वीकृत देते वक्त प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की समिति ने सुरंग में एस्केप रूट का प्रावधान किया था. 20 फरवरी 2018 को भारत सरकार के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया था कि 1383.78 करोड़ रुपये लागत से बनने वाली साढ़े चार किलोमीटर की इस सुरंग को एस्केप पैसेज के साथ मंजूरी दी गयी थी.
तो सवाल है कि एस्केप रूट यानि बचाव मार्ग क्यूं नहीं था सिलक्यारा सुरंग में ? और इससे भी दीगर बात यह है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति के फैसले का उल्लंघन करने वाली सुरंग निर्माता कंपनी का नाम तक केंद्र सरकार और उसके मंत्री नाम तक क्यूं नहीं लेना चाहते ?
आखिरकार इतना मेहरबान क्यूं हैं, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, इस कंपनी पर कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति की अवज्ञा के बावजूद कार्यवाही तो दूर कोई नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी का नाम तक नहीं लेना चाहता. इस कंपनी का नाम ना आए, इसके लिए संसद में गडकरी जी ने सवाल का जवाब घुमावदार जलेबी की तरह दिया !
और यह क्या इकलौता दोष है इस कंपनी का ?
अखबारी रिपोर्टों की माने तो सुरंग में फंसे 41 मजदूरों में से केवल 13 का ही नियमानुसार श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन था. 28 मजदूरों का ना कोई बीमा था, ना कोई पंजीकरण. मज़दूरों की स्वास्थ्य जांच का भी कोई इंतजाम नहीं था.
2018 में सुरंग के काम शुरू होने से पहले विशेषज्ञों ने बता दिया था कि इस इलाके की भूगर्भीय संरचना बेहद कमजोर चट्टानों वाली है. टेक्नोक्रेट एडवाइजरी सर्विसेस ने सर्वे रिपोर्ट में बता दिया था कि इस इलाके में अधिकांश चट्टानें बेहद कमजोर है और यहाँ भूस्खलन का अंदेशा बना रहेगा.
बीते दिनों अंग्रेजी अखबार- टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सिलक्यारा टनल में बीते पाँच सालों में 20 से अधिक बार भू स्खलन की घटनाएँ हो चुकी हैं. यह हैरत की बात है कि उक्त सुरंग में लगातार भूस्खलन की घटनाएँ हो रही थी और तब भी किसी ने न तो मजदूरों की सुरक्षा की चिंता की और ना ही इस इलाके की तबाही की परवाह की !
जिस नवयुग इंजीनियरिंग का नाम लेने में भी देश की बेहद शक्तिशाली सरकार के आला हुक्मरान घबरा रहे हैं, उसके कारनामें तो देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे ही हैं. अगस्त 2023 में निर्माणाधीन नागपुर-मुंबई समृद्धि एक्सप्रेस वे फेज तीन में बड़ी क्रेन (गार्डर लॉंचिंग मशीन) के गिरने से बीस मजदूरों की मौत हो गयी. यह काम भी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी करवा रही है. इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने कंपनी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (आपराधिक मानव वध) का मुकदमा दर्ज किया है.
लेकिन इतना सब होने के बावजूद इस कंपनी को बचाने का हर मुमकिन प्रयास क्यूं किया जा रहा है ? इसलिए क्यूंकि यह कंपनी, उस विनाशकारी विकास के मॉडल का एक छोटा सा अंग भर है, जिसे लागू करने में इस देश की सरकार प्राणपण से लगी हुई है. पहाड़ों की तबाही पर खड़े हो कर भी चंद बड़े कॉरपोरेटों की तिजोरी भरने और उसके जरिये स्वयं को शक्तिसंपन्न बनाने में लगी हुई है. जल-जंगल-जमीन पर बड़ी पूंजी के कब्जे का अभियान तो यह, है ही.
इसलिए वह इस खतरे को भाँप चुके हैं कि एक कंपनी पर उंगली उठने का मतलब लुटेरे विनाशकारी विकास के मॉडल पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होना है. इसलिए मजदूरों का जीवन खतरे में डालने वाली कंपनी को बचाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.
वे नाम लें या ना लें पर हम तो कहेंगे ही कि सिलक्यारा सुरंग हादसे के लिए नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी और एनएचआईडीसीएल हैं और उनके खिलाफ इस लापरवाही के लिए मुकदमा दर्ज होना चाहिए.
नुक्ता ए नजर से साभार