हिमालय पर घटती बर्फ बड़ी चिन्ता की बात

खुली आंखों से देख सकते हैं हिमालय पर कम होती बर्फ की स्थिति

त्रिलोचन भट्ट

 

केदारनाथ विधानसभा उप चुनाव के सिलसिले में 11 दिन तक इस घाटी में रहा। मेरा जन्म इसी घाटी में हुआ। बचपन और किशोरावस्था यहीं बीती। बाद के दौर में कुछ-कुछ दिनों के लिए आना ता हुआ, लेकिन घाटी में हो रहे बदलाव ज्यादा महसूस नहीं कर पाया। इस बार केदार घाटी की हर उप घाटी में गया और कई तरह के बदलाव देखे। सबसे बड़ा बदलाव हिमालय में देखा। मैं अपने मोबाइल वाले कैमरे से हिमालय की तस्वीरें लेने का प्रयास करता रहा, लेकिन वैसी तस्वीरें नहीं आई, जैसे नजारे आंखों से दिख रहे थे। जो देखा, वह ये कि हिमालय में अब से 30-35 साल पहले के मुकाबले बर्फ बहुत कम हो गई है। पिछले दो महीने में एक बूंद भी बारिश न होने से भी हालात बिगड़े हैं। फिलहाल इस घाटी को उप चुनाव के नतीजों के साथ ही बारिश का भी इंतजार है और उच्च हिमालयी क्षेत्रों को बर्फबारी का।

अपने 11 दिनों के केदार घाटी प्रवास के दौरान मैं अलग-अलग क्षेत्रों से होकर हिमालय के नजदीक पहुंचा। मंदाकिनी घाटी में सोनप्रयाग और त्रियुगी नारायण तक तो मद्महेश्वर घाटी में मनसूना तक। तल्ला नागपुर क्षेत्र में कनकचौंरी और मोहनखाल तक। हर जगह से हिमालय को देखा और महसूस किया कि जिस हिमालय से आंखें खुलने के साथ ही साक्षात्कार हुआ था, जिस हिमालय को न सिर्फ किताबों में पढ़ा, बल्कि खुद भी महसूस किया, वह हिमालय अब वैसा नहीं रहा। मैंने हिमालय की चोटियों को दूर से देखकर ही महसूस किया कि अब पहले की तुलना में बर्फ बहुत कम हो गई है। मोबाइल कैमरे से तस्वीरें लेते हुए लगा कि मेरे पास भी एक अच्छा कैमरा होता तो जो दिख रहा है, उसे कैमरे में कैद कर पाता। फिलहाल मुझे इसी कैमरे से संतोष करना पड़ा और आपको इन्हीं धुंधली तस्वीरों से संतोष करना पड़ेगा।

किलोमीटर से ज्यादा पीछे खिसक गया है।

ग्लेशियरों का इस हालात में पहुंचना और हिमालय की चोटियों पर बर्फ की मात्रा कम हो जाना एक बड़ा संकेत है इस बात का कि हिमालयी ग्लेशियर खतरे में हैं और इसकी मुख्य वजह है मानवीय हस्तक्षेप। भारी भरकम निर्माण और जरूरत से ज्यादा चौड़ी सड़कों को लेकर बार-बार आगाह किया जा चुका है।

कुछ लोगों का कहना था कि इस बार मानसून की विदाई के बाद से अब तक इस क्षेत्र में बारिश न होने के कारण हिमालय की चोटियों पर बर्फ कम हो गई है। होता यह है कि मानसूनी बारिश में बर्फ तेजी से पिघलती है, लेकिन मानसून के बाद स्थानीय कारणों से या वेस्टर्न डिस्टर्बेंस से जो बारिश होती है, उससे हिमालय की चोटियों पर बर्फ गिरती है। इस बार पिछले दो महीनों से बारिश लगभग बंद है।

मौसम विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1 अक्टूबर से 22 नवंबर तक उत्तराखंड के ज्यादातर हिस्सों में या तो बारिश हुई ही नहीं है, या नाम मात्र की हुई है। इससे पहले सितंबर कें आखिरी तीन हफ्तों में भी बारिश नहीं हुई थी। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर से 22 नवंबर के बीच राज्य में सिर्फ 3.5 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य रूप से इस दौरान 35.5 मिलीमीटर बारिश हो जाती है। यानी कि सामान्य से 99 प्रतिशत कम बारिश हुई है। केदार घाटी वाले रुद्रप्रयाग जिले में इस दौरान 1.3 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि सामान्य रूप से 27.1 मिलीमीटर बारिश होती है। फिलहाल केदार घाटी और यहां की हिमालयी चोटियों को बेसब्री से बारिश और बर्फबारी का इंतजार है।

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