अग्निवीर: सैनिक या सिक्योरिटी गार्ड!

त्रिलोचन भट्ट

प जरा अपने गांव में, अपने मोहल्ले में या अपनी रिश्तेदारियों में नजर दौड़ाएं। कितने पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार हैं? यदि आप भी बीजेपी नेताओं की तरह यह मानते हैं कि ये सारे के सारे अयोग्य हैं, नालायक हैं और नौकरी लगना इनके बस का नहीं है तो माफ करना मुझे आपसे कुछ नहीं कहना। लेकिन, यदि आप जानना चाहते हैं कि इसकी वजह क्या है, युवाओं को बेरोजगार रखने के पीछे क्या खेल चल रहे हैं तो कुछ बातों पर गंभीरता से मनन करना होगा।

मैं बेरोजगारी के आंकड़ों और बेरोजगारी के कारणों पर बात करूं, इससे पहले एक ताजा घटना बताता हूं। उत्तराखंड के बीजेपी नेता हैं गणेश जोशी। मंत्री हैं। वे टिहरी क्षेत्र की बीजेपी उम्मीदवार रानी माला राज्यलक्ष्मी के साथ देहरादून के गढ़ी कैंट में चुनाव प्रचार करने गये थे। लोगों ने उन्हें घेर लिया और बॉबी पंवार जिन्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिये। गणेश जोशी, जिनकी तस्वीर के बिना देहरादून का कोई अखबार किसी भी दिन नहीं छपता, उन्हें अपना सा मुंह लेकर अपनी उम्मीदवार के साथ वापस लौटना पड़ा। इस घटना की वजह क्या है? बेराजगारी। बॉबी पंवार बेरोजगार युवाओं के नेतृत्व करते हुए चुनाव मैदान में उतरे हैं और उन्हें ऐसा समर्थन मिल रहा है कि खुद को कद्दावर नेता मानने वाले, घमंड में चूर रहने वाले, अखबारों को नियमित विज्ञापन देने वाले गणेश जोशी को और साथ में उनकी उम्मीदवार रानी साहिबा को लौटना पड़ा। बॉबी को मिल रहा समर्थन शानदार है। लेकिन मैं अब भी यह मानता हूं कि इस वक्त सभी को मिलकर नौकरियां बेचने वाली, अंकिता मर्डर पर पर्दा डालने वाली, हेलंग की महिलाओं से घास छीनने वाली, बीजेपी का मुकाबला करना चाहिए था।

जरा आंकड़ों और सर्वे की बात करें। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी इंटरनेशनल लेबर ऑग्रेनाइजेशन, (आईएलओ) ने ‘द इंडिया इंपलॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ जारी की है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 2000 में युवाओं में बेरोजगारी दर 35.2 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गई। यानी दो वर्षों में दो गुनी, और वादा क्या था? हर साल…… दो करोड़… रोजगार। रिपोर्ट बताती है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं और पढ़े-लिखे युवाओं में बेरोजगारी का अनुपात ज्यादा है। मतलब ये हुआ कि हमारे बच्चे पढ़ाई तो कर रहे हैं, लेकिन रोजगार के नाम पर ठन ठन गोपाल है। कुछ नहीं घर बैठो और हिन्दू मुस्लिम नफरत के आईटी सेल के मैसेज आगे बढ़ाओ।

हमारी बेटियां भी आज पढ़-लिखकर नौकरियों में जाने के सपने देखती हैं। इस सपने को भुनाने के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया गया। लेकिन हर रोज बेटियों के साथ अपराध हो रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि 2022 में बेरोजगार ग्रैजुएट डिग्री धारी महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा थी। कुल मिलाकर ऐसी महिलाओं की संख्या थी 48.4 फीसदी और पुरुषों की मात्र 9.8 फीसदी। यानी बेरोजगारों में महिलाएं लगभग 95 फीसदी हैं।

रिपोर्ट ये भी कहती है कि साल 2000 से 2022 के बीच परमानेंट नौकरी कर रहे लोगों की संख्या मात्र 10 फीसदी थी और 90 फीसदी लोग या तो अपना काम कर रहे थे या कोई कच्ची नौकरी कर रहे थे। कच्ची नौकरी का मतलब है संविदा, जिसमें बहुत कम वेतन देकर ज्यादा काम करवाया जाता है। कच्ची या अस्थाई नौकरी का सबसे बड़ा उदाहरण अग्निवीर है। उत्तराखंड में युवा नौकरी में दो विभागों को प्राथमिकता देते रहे हैं। अध्यापक या फिर सैनिक। अध्यापकों की नई भर्तियां लगभग बंद हैं। और सैनिकों की जगह अब अग्निवीर हैं।
ढोल पीटा जा रहा है कि अग्निवीर तो बहुत सफल योजना है। देखा नहीं अग्निवीर भर्ती के लिए कितनी बड़ी संख्या में युवक आ रहे हैं। ऐसा कहकर आम नागरिकों को फिर से धोखा दिया जा रहा है? जिस देश में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती के लिए पीएचडी डिग्री धारक आ रहे हों, वहां अग्निवीर भर्ती के लिए भीड़ न हो, ऐसा हो नहीं सकता। अग्निवीर भर्ती के लिए यह भीड़ आपकी सरकार की कामयाबी नहीं नाकामयाबी है। पर हमारी सरकारें तो नाकाबयाबियों का भी जश्न मना लेती हैं। देखा है हमने सिलक्यारा सुरंग हादसे में… एक बड़े हादसे को जश्न में बदल दिया गया था।

अग्निवीर के मामले में एक अपडेट ये है कि अब अग्निवीर भर्ती होने वाले युवाओं को पहले टेस्ट देना होगा। इस मामले में युवा हल्ला बोल के अनुपम इस मामले में लगातार काम कर रहे हैं। एक इंटरव्यू में वे कहते हैं कि अग्निवीर योजना उद्योगपतियों के कहने पर लाई गई। दरअसल उन्हें ट्रेनिंगशुदा सिक्योरिटी गार्ड चाहिए और सेना से उन्हें प्रशिक्षण मिले तो इससे अच्छी बात और क्या होगी। लेकिन अब उद्योगपतियों लगता है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि सेे आने वाले इन युवाओं का हाथ अंग्रेजी में तंग है। सेठ दोस्तों को ऐसे सिक्योरिटी गार्ड चाहिए जो अंग्रेजी भी बोल लें। बस फिर क्या था, भर्ती से पहले टेस्ट की शर्त रख दी। ताकि पता लगाया जा सके कि उम्मीदवार की अंग्रेजी कैसी है।

अग्निवीर को लेकर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल के युवक अग्निवीर योजना के बाद भर्ती होने नहीं आ रहे हैं। वे चीन की फौज में जा रहे हैं। यह बात मैं नहीं कह रहा लद्दाख के बहुचर्चित नेता सोनम वांगचुक ने कही है। यह हमारे लिए, हमारे देश ेके लिए एक गंभीर और चिन्ताजनक पहलू हैै। सोनम वांगचुक के अनुसार माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता तो या तो वह झूठ बोल रहा है, या नेपाली गोरखा है। नेपाली गोरखों की इसी बहादुरी के कारण भारत में एक गोरखा रेजीमेंट है। लेकिन अब गोरखा इस रेजीमेंट में शामिल न होकर चीन की सेना में जा रहे हैं। यानी जो गोरखा अब तक हमारे लिए लड़ते रहे हैं वे अब सीधे हमारे खिलाफ होंगे। यही कुल जमा हासिल किया है मोदी की 10 सालों की सरकार ने।
इस देश में जॉब की कमी नहीं है। सरकारी विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं। आप खुद कभी समय निकालकर अपने पास के सरकारी स्कूल या अस्पताल में जाइये और देखिए कि अध्यापकों, डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों के कितने पद खाली हैं। यही स्थिति हर विभाग में है। जिन पदों से कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं, उन पर अपॉयमेंट करने के बजाए उन पदों को खत्म किया जा रहा है। सरकारें सिर्फ पैसा बचाने के लगी हुई हैं। पैसा क्यों बचाना है, ताकि चुनावों में हमारा वोट खरीदा जा सके। आप अपने आसपास हो रहे चुनाव प्रचार को देखिए और अंदाजा लगाइये। आने वाले दिनों में क्या कुछ बांटा जाने वाला है, इस पर भी नजर रखिए। याद इतना जरूर रखिये कि वोट खरीदने के लिए जो कुछ बांटा जा रहा है, जो जलसे जुलूस सभाएं हो रही हैं उस पैसे से हमारे बच्चों को बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता था।

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