गुलामी में बसे, आजाद भारत में उजड़े-एक
सामान्य नागरिक अधिकार भी हासिल नहीं रामपुर टोंगिया के लोगों को
सलीम मलिक
नैनीताल जिले की रामनगर तहसील कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, इस प्रसिद्धि को मुंह चिढ़ाता इसी तहसील के मुख्यालय से 32 किमी. की दूरी बसा रामपुर टोंगिया गांव भी है। अंग्रेजों के शासनकाल में बसाया यह गांव अब वन अधिनियम के कारण वन ग्राम की श्रेणी में है। वन ग्राम की श्रेणी में आते ही रामपुर टोंगिया के लोगों के सामने जो परिस्थितियां पैदा हुई, उसने इस गांव को उत्तराखंड का कालापानी बना दिया है। बात बोलेगी ने इस गांव में जाकर यहां रह रहे लोगों की परेशानियां जानने का प्रयास किया।
राज्य में कई जगह फैले टोंगिया गांवों का सिलसिला ब्रिटिशकालीन भारत से जुड़ता है। इस भूभाग के घने जंगलों का अंग्रेजों ने व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू किया तो मजदूरों की जरूरत पड़ी। इसके लिए उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों को इस काम में लगाया गया। इन लोगों को अंग्रेजों ने जंगलात के आसपास जमीनें आवंटित कर बसाया। इनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति के लोग थे, जिनके पास पहाड़ों में निजी भूमि नहीं थी।अंग्रेजों ने इन्हें जीवन जीने लाकनसभी सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई। मजदूरों की इन्हीं बस्तियों को टोंगिया नाम से पुकारा गया। आजादी से पहले इन्हें जंगलों पर पूरे अधिकार थे। आजादी के बाद भी वन विभाग ने इन्हें कुछ शर्तों के साथ इन्हें यहीं रहने की अनुमति दे दी और जमीनों के पट्टे भी दिये।
