चमोली एवलांच में 4 जानें गई, 5 लापता

त्रिलोचन भट्ट

माणा में कल सुबह आये एवलांच के बाद जिस तरह से सेना ने बचाव अभियान शुरू किया था और बर्फ में दबे कई लोगों को सकुशल बाहर निकाला था, उसके बाद हमें उम्मीद थी कि सभी दबे हुए लोग सकुशल निकाल लिये जाएंगे। लेकिन, दुर्भाग्यवश 4 लोगों की मौत हो जाने की सूचना है और 5 अब भी लापता बताये जा रहे हैं। बावजूद इसके कई फीट बर्फ और लगातार बर्फबारी के बीच जिस तरह से राहत अभियान चलाया जा रहा है वह सराहनीय है। हालांकि यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि पहले से ही भारी बर्फबारी के पूर्वानुमान के बावजूद मजदूरों को ऐसी जगह क्यों ठहराया गया था, जहां इस तरह की घटना हो सकती थी। अब घटना की सभी स्थितियां लगभग साफ हो गई हैं।

कल दोपहर जब माणा के पास एवलांच की पहली खबर आई थी तो घटनास्थल से कोई साफ जानकारी नहीं मिल पा रही थी। शुरुआती सूचनाओं में बताया गया था कि 57 मजदूर बर्फ में दब गये हैं। हालांकि शाम को जब दबे हुए मजदूरों की सूची जारी की गई तो उसमें 55 नाम थे। बताया गया कि सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ ने मजदूरों के रहने के लिए जो कंटेनर बनाये थे, उनमें कुल जो 57 लोग रह रहे थे, उनमें से दो छुट्टी पर थे। यानी घटना के वक्त मौके पर कुल 55 लोग ही थे।

बाद में पता चला कि जो 55 लोग उन कंटेनर में थे, उनमें से 22 एवलांच आते ही अपने कंटेनरों से निकलने में सफल हो गये थे और बदरीनाथ की तरफ भाग गये थे। यानी कि कुल 33 मजदूर बर्फ में दबे थे। जो लोग जान बचाकर भागे थे, उन्हें कल दिन में सकुशल रेस्क्यू कर दिया गया। इसके साथ ही बर्फ में दबे 10 मजदूरों को भी कल देर शाम तक सकुशल रेस्क्यू करने में सफलता मिल गई थी। भारतीय सेना के अनुसार पूरी रात बचाव अभियान जारी रहा और सुबह तक 14 और मजदूर रेस्क्यू किये गये। आज दोपहर तक 4 और मजदूरों को बर्फ में से निकाला गया। इनमें से 2 की मौत हो चुकी थी और 4 गंभीर रूप से घायल थे। घायलों को हेलीकॉप्टर से जोशीमठ पहुंचाया गया।

इससे पहले भारतीय सेना के एक पीआरओ लेफिटनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव का भी एक वीडियो आया, जिसमें वे 4 लोगों की मौत हो जाने की बात कहते सुनाई दे रहे हैं और एक मजदूर की हालत गंभीर होने की जानकारी दे रहे हैं। साथ ही 5 लापता लोगों की तलाश जारी रहने की भी बात कह रहे हैं। इन दोनों वीडियो के बाद माना जा रहा है कि कुल 4 मजदूरों की मौत अब तक हुई है और कुछ घायल हैं, जिन्हें जोशीमठ हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। इस बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी आज सुबह हेलीकॉप्टर से जोशीमठ पहुंचे। उन्होंने वहां लाये गये घायलों से बातचीत की और डीएम से राहत अभियान के बारे में जानकारी ली। देहरादून लौटकर उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि राहत एवं बचाव अभियान तेजी से चलाया जा रहा है।

एवलांच की इस घटना से प्रभावित 55 मजदूरों की जो सूची जारी की गई है। उसके हिसाब से इनमें से 11 उत्तराखंड के, 11 यूपी के, 11 ही बिहार के हैं। इनके अलावा 7 मजदूर हिमाचल प्रदेश के, 1 पंजाब का और एक जम्मू कश्मीर का है। सूची में 13 ऐसे मजदूरों के नाम हैं, जिनका पता नहीं लिखा गया है। बाकी मजूदूरों का भी पते की जगह या तो सिर्फ राज्य का नाम है या राज्य के साथ जिले का भी। सूची में देखा जा सकता है, पते के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ दिया गया। इससे यह सवाल तो उठता ही है कि क्या ठीक से पता और पहचान दर्ज किये बिना ही यहां मजदूरों से काम करवाया जा रहा था। सवाल यह भी कि इस तरह की विषम परिस्थितियों में काम करने वाले इन मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई सुरक्षित व्यवस्था क्यों नहीं की गई थी। ग्लेशियर टूटकर सीधे मजदूरों के कंटेनरों के ऊपर गिरा है, इसका सीधा अर्थ है कि ग्लेशियर के ठीक नीचे ये कंटेनर बनाये गये थे। जबकि बदरीनाथ से माणा के बीच कई ऐसी जगह हैं, जो पहाड़ या ग्लेशियर के ठीक नीचे नहीं हैं।

उत्तराखंड सहित पूरे उत्तर भारत में सर्दी का मौसम इस साल लगभग सूखा गया। इस दौरान एक या दो दिन कुछ जगहों पर बहुत हल्की बारिश तो हुई, लेकिन यह बारिश सामान्य बारिश का सिर्फ 9 प्रतिशत ही थी। आम तौर पर एक जनवरी से 15 फरवरी तक उत्तराखंड में 75.7 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस वर्ष इस अंतराल में सिर्फ 6.9 मिमी बारिश हुई थी। 27 फरवरी को बारिश शुरू हुई तो 24 घंटे के भीतर राज्य में 37.1 मिमी बारिश हो चुकी थी, जो 24 घंटे के दौरान सामान्य से 1339 प्रतिशत ज्यादा थी। 24 घंटे के दौरान हुई इस बारिश के कारण पूरे सीजन में बारिश का अंतर 91 प्रतिशत से घटकर 48 प्रतिशत रह गया। इसके बाद भी 28 फरवरी को पूरे दिन बारिश जारी रही। यानी कि पूरे सीजन में जितनी बारिश होनी चाहिए थी, उतनी सिर्फ दो दिन में हो गई।

उत्तराखंड फॉरेस्टरी एंड हॉर्टिक्ल्चर यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के हेड डॉ. एसपी सती कहते हैं कि कल जब बारिश शुरू हुई थी तो उन्होंने एवलांच की आशंका जाहिर की थी। वे कहते हैं कि पहले उच्च और मध्य हिमालयी क्षेत्र में दिसम्बर और जनवरी के महीने में बर्फबारी होती थी। उस समय जमीन काफी ठंडी रहती है, जिससे ताजी बर्फ की पकड़ जमीन पर मजबूत हो जाती है। लेकिन, अब बर्फबारी दिसम्बर जनवरी के बजाय फरवरी और मार्च में हो रही है। इस मौसम में जमीन दिसम्बर-जनवरी के मुकाबले गर्म हो जाती है और ताजा पड़ने वाली बर्फ का घनत्व कम होता है। यह ताजी बर्फ जमीन पर पकड़ नहीं बना पाती। ऐसे में जब ज्यादा बर्फबारी होती है कि नीचे की जमीन पर कमजोर पकड़ वाली बर्फ खिसक जाती है और एवलांच की स्थिति बन जाती है। मार्च 2021 में धौलीगंगा के कैचमेंट एरिया में आया एवलांच भी इसी तरह की घटना थी। उन्होंने बर्फबारी का मौसम शिफ्ट हो जाने के कारण आने वाले सालों में इस तरह की घटनाएं और ज्यादा होने की आशंका जताई है।
डॉ. सती कहते हैं कि बर्फबारी के सीजन में यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है और हिमालय ही नहीं पूरी दुनिया के ग्लेशियरों के लिए यह एक बड़ा खतरा है। वे कहते हैं कि दिसम्बर-जनवरी में बर्फबारी के बाद जब मौसम खुलता है तो पाला पड़ता है और यह पाला ताजा पड़ी बर्फ को मजबूत कर देता है, जो बाद में ग्लेशियर का हिस्सा बन जाती है। लेकिन, फरवरी और मार्च में पड़ने वाली बर्फ मौसम खुलने के साथ ही पिघल जाती है और यह बर्फ ग्लेशियर के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाती। इसका सीधा अर्थ है कि आने वाले सालों में ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगातार कम होते रहने की आशंका है। इसी के साथ फरवरी और मार्च के महीने में होने वाली बर्फबारी से एवलांच की संख्या बढ़ने की भी संभावना है।

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