संभल से उत्तरकाशी तक नफरत की खेती
हैदराबाद के बीजेपी विधायक ने उत्तरकाशी में बोई नफरत की फसल
त्रिलोचन भट्ट
क्या बीजेपी संविधान में विश्वास जताने की ड्रामेबाजी भी अब पूरी तरह से छोड़ चुकी है या छोड़ने जा रही है? संविधान में विश्वास जताने के बीजेपी जो दावे करती है, वह सिर्फ ड्रामेबाजी ही होती है। जिस संविधान की बदौलत बीजेपी और उसके श्रेष्ठ पुरुष आज देश की सत्ता पर काबिज हैं, उस संविधान को इतनी जल्दी नकार देना भी तो ठीक नहीं। लेकिन, इरादे तो यही हैं। वरना संभल से लेकर उत्तरकाशी तक जो हो रहा है, कोर्ट से लेकर पुलिस तक जो कर रही है, क्या वह संविधान के अनुरूप है? यदि आप संविधान में विश्वास रखने वाले लोग हैं। यदि आप इस देश की एकता और अखंडता के हिमायती हैं, तो क्या आपको नहीं लगता कि इस देश को दंगों की आग में झोंकने का प्रयास किया जा रहा है? ये बात कहते हुए मैं अपनी एक आशंका भी यहां जोड़ना चाहता हूं। कोई भी सत्ताधारी पार्टी अपने देश में दंगा क्यों करवाना चाहेगी? कहीं हम किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार तो नहीं हो गये हैं? आप हाल के दिनों में देखेंगे कि भारत ही नहीं, बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है।
पहले मैं अपनी आशंका आपके सामने रख देता हूं। भारत में जो कुछ इन दिनों मुसलमानों के खिलाफ हो रहा है, वही बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ हो रहा है और पाकिस्तान से भी इस तरह की खबरें आ रही हैं। बांग्लादेश में हाल ही में तख्ता पलट हुआ है और तमाम रिपोर्ट बताती हैं कि तख्तापलट की साजिश में अमेरिका शामिल था।
तख्ता पलट के बाद से बांग्लादेश में लगातार अल्पसंख्यकों को, यानी हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है। और भारत में क्या हो रहा है, आप देख रहे हैं। अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियानों का पैटर्न देखेंगे तो दोनों देशों मंे आपको कई समानताएं नजर आ जाएंगी। इतना फर्क जरूर है कि बांग्लादेश के हिन्दू चिट्ठी लिखकर भारत से हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं। हिन्दुस्तान के मुसलमान ऐसी ही ज्यादातियां सहने के बाद भी कम से किसी दूसरे देश से इस तरह की मांग नहीं कर रहे हैं।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर राष्ट्रीय मीडिया पर बेशक बहुत बात न हो रही हो, लेकिन यहां भी हालात लगातार खराब हैं। कुछ स्थानीय पत्रकार जरूर इस पर बात कर रहे हैं। इस मामले में गंभीर चिन्ता का बात ये है कि तेलंगाना तक से बीजेपी विधायकों को बुलाकर नफरत बोई जा रही है। आपको याद होगा बीते 24 अक्टूबर को उत्तरकाशी में एक जुलूस निकाला गया था। उस मस्जिद के खिलाफ जो 1970 से पहले बन गई थी और जिसे प्रशासन ने अपनी जांच में वैध पाया था। बावजूद इसके जुलूस निकाला गया, नफरती भाषण दिये गये। जब नफरती भीड़ पथराव करने लगी तो पुलिस ने लाठियां भी चलाई। मुकदमा भी दर्ज किया। उसके बाद कई अधिकारियों को बदल दिया गया और मुख्यमंत्री ने फिर से जांच करने के आदेश भी दे डाले। पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज मुकदमे से गंभीर धाराएं हटा दी गई।
उस समय जब सवाल उठा कि इस जुलूस को निकालने की अनुमति क्यों दी गई, तो प्रशासन की तरफ से जवाब आया कि शर्तों के साथ अनुमति दी गई थी। जाहिर है शर्तों का उल्लंघन किया गया था। अब पहली दिसंबर को एक बार फिर से इन्हीं लोगों को मस्जिद के खिलाफ उत्तरकाशी में महापंचायत करने की अनुमति दे दी गई। फिर से कहा गया कि अनुमति शर्तों के साथ दी गई है। हाई कोर्ट को भी गुमराह किया गया। हाईकोर्ट में कहा गया कि उत्तरकाशी में ऐसी किसी महापंचायत की अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन अगले दिन अनुमति दे दी गई।
शर्तों के साथ और हाई कोर्ट को गुमराह करके दी गई इस अनुमति का नतीजा ये हुआ कि बीजेपी जो अभी तक पीछे से इस नफरती अभियान का समर्थन कर रही थी, खुलकर सामने आ गई। न सिर्फ बीजेपी विधायक सुरेश चौहान इस महापंचायत में शामिल हुए, बल्कि तेलंगाना से टी राजा नाम के एक विधायक को भी बुलाया गया।
सुरेश चौहान और टी राजा ने यहां जमकर नफरती भाषण तो दिये ही, टी राजा ने सीएम धामी को भी जमकर कोसा और योगी आदित्यनाथ से सबक लेकर बुलडोजर तैयार रखने की बात कही। जब महसूस हुआ कि ये सब तो सीएम धाकड़ धामी के खिलाफ हो गया तो टी राजा से एक ट्वीट करवाया गया, जिसमें धामी साहब की जमकर तारीफ करवाई गई।
उसी रात बीजेपी ने अखबारों और पत्रकारों को एक लिखी-लिखाई खबर भिजवाई। खबर टी राजा के उत्तरकाशी के भाषण से शुरू नहीं की गई, बल्कि उस ट्वीट से शुरू की गई, जो धामी साहब की तारीफ में किया गया था या कहें कि करवाया गया था। खबर में टी राजा को फायर ब्रांड नेता बताया गया है। कई अखबारों और न्यूज पोर्टलों ने यह खबर ऐसी ही छाप दी बिना यह सोचे कि जब बंदा महापंचायत में मौजूद था, उसने वहां भाषण भी दिये तो फिर खबर ट्वीट के हवाले से क्यों छापी जाए?
इस पूरे मामले का एक दुखद पहलू यह भी है कि विपक्षी कांग्रेस या कहें कि इंडिया गठबंधन को जिस आक्रामकता के साथ इसका विरोध करना चाहिए था, वह नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस की ओर से सिर्फ लुंज-पुंज बयान आ रहे हैं। सीपीआई एमएल की ओर से भी बयान जारी हुआ है, लेकिन अन्य पार्टियां लगभग मौन हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने इस मामले पर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी है। उन्होंने इस मामले में सरकार की संलिप्तता बताई है। लेकिन हरीश रावत की इस पोस्ट को पढ़कर लगता है कि उन्होंने लव जेहाद, लैंड जेहाद और थूक जेहाद जैसे नफरती और बेमतलब के शब्दों को कहीं न कहीं अपनी स्वीकृत दी है। वे लिखते हैं कि लव जेहाद, लैंड जेहाद और थूक जेहाद के लिए देश का कानून है। हरीश रावत जी से मैं यह जानना चाहूंगा कि जिन शब्दों का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं है, जो शब्द सिर्फ नफरत बोने के लिए ईजाद किये गये हैं, उन पर देश में कौन से कानून है और कैसा कानून है? मेरा मानना है कि हरीश रावत जैसे सीनियर नेता को इन शब्दों को अपनी स्वीकृति देने के बजाय इन्हें हतोत्साहित करना चाहिए। सरकार संसद में कह चुकी है कि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।
मैं फिर उसी मामले पर आता हूं कि संभल से लेकर उत्तरकाशी तक मस्जिदों और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ जो नफरती अभियान चलाया जा रहा है वह संयोग है या प्रयोग। बंटेगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं जैसे नारे भी क्या संयोग हैं या फिर प्रयोग? और सबसे बड़ी बात ये कि कहीं हम देशभर में नफरती हिंसा फैलाकर देश को तबाह कर देने और आने वाली पीढ़ियों का जीवन बर्बाद कर देने के किसी अंतरराष्ट्रीय ताकत के हाथों में तो नहीं खेल रहे हैं। हम किसी बड़ी साजिश का शिकार तो नहीं हो गये हैं? कभी फुर्सत हो तो सोचिएगा जरूर।