सुरंग और कुछ अनगढ़ सवाल/ बिज्जू नेगी 

अभी तक जितनी जानकारी है,
सुरंग में वे जहाँ फंसे है,
वहां इतनी तो जगह है कि
हवा या सांस को लेकर
घुटन नहीं होगी।
और चहलकदमी भी
वे कर सकते हैं।
वे कितनी चहलकदमी करते होंगे?
कितना बैठते होंगे?
कितना सोते होंगे?
क्या वे सो पाते हैं?
क्या उन्हें नींद ठीक आ रही होगी?
सोये में क्या उन्हें अच्छे-बुरे सपने आते होंगे?
या जागे में भी
उम्मीद और निराशा के सपने देखते होंगे?
क्या उन्होंने अपनी कोई सामूहिक व्यवस्था बना ली होगी?
वे कहाँ और कैसे सोते होंगे?
क्या एक साथ सोते होंगे या
उन्होंने अपने-अपने कोने
तय कर दिए होंगे?
ज़मीन के अंदर,
बाहर वाली ठण्ड शायद न हो
पर फिर भी
ठण्ड कैसी व कितनी होगी?
जो भी तापमान होगा,
वे उससे कैसे निबटते होंगे?
क्या वे एहसास कर पाते हैं
कि रात हो गयी है और
सोने का समय हो गया है?
सुबह हो गयी है और जागने का?
 उठकर, वे पाखाना कहाँ करते होंगे?
क्या वहां शौच के लिए पानी होगा?
क्या उनके फ़ोन चार्ज हो जाते हैं?
कैसे?
क्या वे रोज़ बाहर से चार्ज कर भेजे जा रहे हैं?
वे अपने-घर परिवार वालों से बात कर पाए हैं?
क्या करते रहते हैं?
रिश्तेदारों, दोस्तों से?
क्या whatsapp पर वे ज्यादा समय बिताने लगे हैं?
वे दिन भर क्या करते होंगे?
क्या सोचते होंगे?
क्या बतियाते होंगे?
क्या उन्होंने अपने मनोरंजन के
कोई साधन इज़ाद कर लिए हैं?
उनकी बातों में कितनी हंसी-मज़ाक और
कितनी चिंताजनक बातें होती होंगी?
क्या वे अपनी किस्मत को कोसते होंगे?
क्या वे आपस में बहस या झगड़ा करते होंगे?
इतने दिनों बाद
क्या वे चुप-चुप भी रहने लगे होंगे?
वे रोते भी होंगे?
वे  चुपचाप में रोते हैं या या खुले में?
वे जब सोचते या आपस में बतियाते होंगे
तो किस विषय पर?
 क्या उन्होंने क्रिकेट विश्व-कप की बात की होगी?
और भारत की हार पर वे
निराश हुए होंगे या बोला होगा कि
क्या फर्क पड़ता है?
या चुनाव के माहौल को लेकर?
या राम-मंदिर के बारे में, और भारत-जोड़ो के बारे में?
क्या वे महंगाई के बारे में सोचते-बतियाते होंगे?
या अपने ही रोज़गार के बारे में भी?
वे क्या सोचते हैं कि
जब वे बाहर आ जायेंगे तो क्या होगा?
क्या वे इसी काम पर रहना चाहेंगे या घर-गावं लौटना?
क्यों?
क्या?
कैसे?
कितने ही सवाल हैं?
ये सिर्फ सवाल हैं
अधूरे सवाल, अपूर्ण सवाल
खुद से, उनसे और उनसे भी
जिनको वास्तव में
इनके जवाब देने थे,
देने चाहिए,
देने हैं।
जवाब पता नहीं कहाँ हैं?
कहीं हैं भी कि नहीं?
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