उत्तरकाशी सुरंग हादसा: सवाल दर सवाल
त्रिलोचन भट्ट
उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री रोड पर हादसा किस वक्त हुआ, यह अब तक ठीक से जानकारी नहीं है। कभी आधी रात पर दो बजे तो कभी सुबह 5 से 6 बजे का वक्त बताया जा रहा है। यदि रात 2 बजे हादसा हुआ तो अब 36 घंटे बीत गये हैं। और यदि सुबह 5 बजे हुआ तो 32 घंटे हो चुके हैं। इस बीच हुआ क्या है। एक लिस्ट जारी हुई। एक आपातकालीन नंबर जारी हुआ और मुख्यमंत्री घटनास्थल पर पहुंचे। जल्द से जल्द टनल में फंसे करीब 40 लोगों तक पहुंचने में अब भी हमारी मशीनरी सफल नहीं हो पाई है। मुख्यमंत्री फोटो खिंचवाकर लौट चुके हैं। अब देहरादून आकर सचिवालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्या कहेंगे, वह हम पहले से जानते हैं, लिहाजा इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही जाने वाली बातें कोई खास मायने नहीं रखती। मायने रखता है कि हम फंसे हुए लोगों तक कब पहुंचेंगे और कब उन्हें सकुशलन रेस्क्यू कर पाएंगे?
उत्तरकाशी का यह हादसा कई सवाल छोड़ गया है। ये सवाल 7 फरवरी 2021 को सामने आये थे, जब तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में दो सौ से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई थी। उस वक्त टनल बनाने वाली कंपनी को कई दिनों तक यह भी पता नहीं चल पाया था कि उसके मजदूर ठीेक किस जगह काम कर रहे हैं। सिलक्यारा की घटना बताती है कि तपोवन हादसे से हमने कोई सबक नहीं लिया है, बल्कि हमने सबक लेने की जरूरत ही नहीं समझी है। क्या इसका यह अर्थ नहीं कि मजदूरों की जान की हमें कोई परवाह नहीं।
यह हादसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाने वाली चारधाम सड़क परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना में मजदूरों की सुरक्षा का कितना ध्यान रखा जा रहा है, यह बात सिलक्यारा हादसे ने एक बार फिर साफ कर दी है। सुबह 5 बजे हादसा हो जाने के बाद से लेकर शाम तक प्रशासन के पास राहत कार्य शुरू करने के लिए एक जेसीबी मशीन के अलावा बाकी कोई साधन नहीं था। संकट में फंसे मजदूरों तक पहुंचने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन की जरूरत थी। लेकिन मशीन वहां नहीं थी। 4.5 मीटर लंबी टनल बनाने के दौरान इस मशीन का न होना भी बड़ा सवाल है। इस तरफ न तो नेशनल हाईवे एंड इंन्फ्रॉस्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन ने ध्यान दिया और न ही टनल बना रही कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग ने इसकी जरूरत समझी। हादसा हो जाने के बाद जिला प्रशासन विकासनगर और लखवाड़ जैसे दूर के शहरों और कस्बों से वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन के लिए संपर्क करता रहा। बाद में उत्तराखंड जल संस्थान की ओर से मशीन भेजी गई। बताया जाता है कि मशीन देर रात घटनास्थल पर पहुंची। इसके बाद ही असल में रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जा सका।
एक सवाल और भी। क्या इस तरह की योजनाओं में काम करने वाले मजदूरों को छुट्टी नहीं दी जाती। घटना के दिन रविवार था। कंपनी हो सकता है अलग-अलग दिन मजदूरों को वीकली ऑफ देती हो, लेकिन उस दिन दीपावली भी थी। क्या इन मजदूरों की दीपावली की भी छुट्टी नहीं दी गई थी। जबकि मजदूरों की जो सूची जारी की गई है, उसमें ज्यादातर हिन्दू नाम वाले मजदूर हैं।
ज्यादातर मजदूर यूपी-झारखंड के
जिला प्रशासन ने टनल में फंसे जिन लोगांे की सूची जारी की है, उनमें सबसे ज्यादा 14 मजदूर झारखंड के हैं। उत्तर प्रदेश के 8 लोगांे के नाम इस सूची में हैं। इसके अलावा उड़ीसा के 5, बिहार के 4, असम के 3, पश्चिम बंगाल के 3, उत्तराखंड के 2 और हिमाचल प्रदेश के एक व्यक्ति का नाम इस सूची में दर्ज है। यह सूची कंपनी के हाजिरी रजिस्टर के आधार पर तैयार की गई है। लेकिन इस तरह के निर्माणों में बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर भी रखे जाते हैं, जिनका लेखा-जोखा नहीं रखा जाता। 7 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा में आई बाढ़ के बाद तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में इस तरह का मामला सामने आ चुका है। बताया जाता है कि इस तरह के मजदूर कंपनियों के लिए सबसे मफीद साबित होते हैं। पहले तो उन्हें कम मजदूरी दी जाती है और फिर इस तरह के हादसों की स्थिति में कंपनी उनके प्रति जवाबदेह नहीं होती। आम तौर पर यह माँ लिया जाता है कि जो मजदूर बाहर के राज्यों से आते हैं, उन्हें लेकर सरकार ज्यादा चिंतित नहीं रहती, क्योंकि उनके परिजन इस हालत में नहीं हॉटये कि बार बार आयें और सरकार से सवाल पूछें। तपोवन हादसे में भी ऐसा कि कुछ हुआ था। उस हादसे में मरने वाले कई मजदूरों के तो शव भी बरामद नहीं हो पाए थे।
मुख्यमंत्री गये तो क्या किया
सोमवार दोपहर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौके पर पहुंचे। पहली तो बार-बार यह कहा जाता है कि वीआईपी को ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहिए। जो प्रशासनिक अमला रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटा रहता है, उसे अपना काम छोड़कर वीआईपी की अगुवाई में जुटना पड़ता है। फिर भी मान लें कि इससे फायदा होता है तो यह भी बताना चाहिए कि क्या फायदा हुआ। मौके पर जाकर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों ने कहा कि फंसे हुए लोगों को निकालना प्राथमिकता होनी चाहिए। यह बात वे देहरादून में बैठकर भी कह सकते थे। सवाल तो यह भी उठता है कि कल जब वे दीवावली के अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे तो क्या उन्हें टनल में फंसे लोगों को चिन्ता नहीं थी? सवाल तो यह पूछा जाना चाहिए कि तपोवन हादसे के बाद उनकी सरकार ने निर्माणाधीन सुरंगों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाया है?