चार दिन तक भाईचारा बिखेरता रहा ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था
गंगा नदी के दाहिनी ओर संतनगरी ऋषिकेश। इसी नगरी से बहती है एक और बरसाती नदी है चंद्रभागा। चंद्रभागा बरसात के दिनों में आसपास की बस्तियों के लिए तबाही का कारण बनती है, लेकिन आजकल चौड़े पाटों वाली इस नदी के बीचोबीच एक पतली पानी की धार ही नजर आती है, वह भी गंदे पानी की। गंगा नदी और चंद्रभागा से लगी एक घनी बस्ती है शीशमझाड़ी। सरकार के प्रकोप से इस बस्ती में रहने वाले लोगों के घरौंदे बचाने के लिए एक समय लंबी लड़ाई जनसंगठनों की ओर से लड़ी गई थी। अब इस बस्ती में अच्छे घर हैं और घरों के बाहर इतनी गाड़ियां की जाम की स्थिति बनी रहती है। कुछ रिजॉर्ट आदि भी हैं। ज्यादातर घरों पर एक खास राजनीतिक पार्टी के झंडे लगे हुए हैं। गंगा नदी के दाहिनी तरफ के तटबंध से करीब 200 मीटर की दूरी पर बस्ती का एक छोटा से चौराहा है। चौराहे के एक तरफ शहीद भगतसिंह की प्रतिमा लगी हुई है और प्रतिमा के पास के छोटे से पार्क में तिरंगे के साथ ही कुछ पोस्टर और तख्तियां लिए हुए दो दर्जन से कुछ ज्यादा लोग मौजूद हैं। तख्तियांे पर महात्मा गंाधी, कबीर, स्वामी विवेकानन्द और चंद्रसिंह गढ़वाली जैसे महापुरुषों के चित्र हैं। दरअसल यह भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की ‘ढाई आखर प्रेम ‘ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था है। विभिन्न राज्यों में यह यात्रा निकाली जा चुकी है और अब तीन दिन तक यह जत्था उत्तराखंड में रहने वाला है। मैंने एक पूरे दिन जत्थे के साथ रहकर दिनभर की गतिविधियों का हिस्सा बनने की योजना बनाई है।
शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया है। माल्यार्पण की जिम्मेदारी उत्तराखंड इंसानियत मंच की कमला पंत को दिया गया। माल्यार्पण के साथ ही तीन दिन तक उत्तराखंड में निकलने वाली ^ढाई आखर प्रेम का* सांस्कृतिक यात्रा का आरंभ करने की घोषणा की गई। शुरुआत एक जनगीत से हुई और जत्थे में मौजूद यात्री प्रेम और सौहार्द्र के नारे लगाते हुए आगे बढ़े। शीशमझाड़ी बस्ती के एक चौक पर काफी संख्या में स्थानीय लोग और दुकानदार मौजूद हैं। ये लोग जत्थे का स्वागत करने के लिए यहां इकट्ठा हुए हैं। एक संक्षिप्त कार्यक्रम आयोजित किया गया। जत्थे के साथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध जनगीत गायक सतीश धौलाखंडी भी देहरादून से आये हैं। सतीश धौलाखंडी हों और कोई क्रांतिकारी जनगीत न हो] ऐसा नहीं हो सकता। कुछ ही क्षणों में सतीश धौलाखंडी की बुलंद आवाज में शीशमझाड़ी बस्ती में गूंजने लगी है–
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में बांट दिया भगवान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इंसान को
जैसे–जैसे गीत की स्वर बुलंद होते गये। आसपास के घरों से लोग बाहर निकलने लगे। राह चल रहे लोग भी ठिठक गये। गीत खत्म होने तक एक अच्छी–खासी नुक्कड़ सभा जुट गई। यह अच्छा मौका था जब इस यात्रा के उद्देश्य के बारे में लोगों को बताया जाता। जिम्मेदारी एक बार फिर कमला पंत को मिली। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में भाईचारे और बंधुत्व की भावना को लगातार चोट पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी की जा रही है और समाज को धर्म और जातियों में बांटने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि समाज को बांटने वाली ताकतों के खिलाफ हम सब लोग एकजुट हों और प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के पक्ष में खड़े हों। कमला पंत ने बताया कि भारतीय जन नाट्य मंच की ओर से देशभर में निकाले जा रहे सांस्कृतिक जत्थे को ‘ढाई आखर प्रेम‘ जबूत करने के इप्टा जैसे संगठनों के कार्यक्रमों से नहीं जुड़े तो भविष्य में स्थितियां बेहद खराब होने की पूरी आशंका है।
इप्टा के राज्य अध्यक्ष डॉ. वीके डोभाल ने यात्रा के कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इसी वर्ष 17 और 18 मार्च को झारखंड के डाल्टनगंज में हुए इप्टा के राष्ट्रीय अधिवेशन में 28 सितम्बर यानी शहीद भगत सिंह की जयंती से 30 जनवरी यानी महात्मा गांधी के शहीदी दिवस तक ‘ढाई आखर प्रेम का’ सांस्कृतिक जत्था निकालने का फैसला किया गया था। यह जत्था देश के 22 राज्यों से गुजरेगा। 28 सितंबर को जत्था राजस्थान से रवाना हुआ था। अब तक केरल, बिहार और पंजाब में जत्था निकाला जा चुका है। अगले तीन दिन यानी 31 अक्टूबर से 2 नवंबर में जत्था उत्तराखंड में रहेगा। इसके बाद उड़ीसा, जम्मू–कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, पुडुचेरी, महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में सांस्कृतिक जत्था निकलेगा। नुक्कड़ सभा के अंत में आश्चर्यजनक परिणाम देखा गया। इप्टा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष धर्मानंद लखेड़ा ने लोगों से कहा कि वे भी जितना संभव हो सके इस यात्रा में शामिल हों तो नुक्कड़ सभा में मौजूद आधे से ज्यादा लोग जत्थे के साथ चल पड़े कुछ लोग अगले चौक तक जत्थे के साथ रहे तो कुछ दोपहर को यात्रा के पहले चरण की समाप्ति तक बने रहे।
शीशमझाड़ी के एक अन्य व्यस्त चौक पर इप्टा सहारनपुर की टीम ने मोर्चा संभाला और जोगीरा सारारारा गीत के माध्यम से व्यवस्था पर कटाक्ष करती शानदार प्रस्तुति दी। एक बार फिर से इस चौक में काफी संख्या में लोग जुट गये। पिछले चौक से जत्थे के साथ चल रहे कुछ लोग यहां से वापस लौटे तो इस चौक से कुछ और लोग जत्थे में शामिल हो गये। जनगीत और सांप्रदायिक सौहार्द के नारे लगाता जत्था करीब 4 किमी शीशमझाड़ी की सड़कों पर घूमता हुआ एक और बस्ती चंद्रेश्वर नगर में पहुंचा। इस बस्ती में मलिन बस्ती के गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल चलाया जा रहा है, चंद्रेश्वर पब्लिक स्कूल। प्रमोद इस स्कूल के प्रबंधक हैं। स्कूल में पहले से सांस्कृतिक जत्थे के स्वागत की तैयारियां कर दी गई थी। स्कूल का स्टाफ और बच्चे जत्थे की पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहे थे। संक्षिप्त स्वागत समारोह के बाद एक बार फिर से सतीश धौलाखंडी को जनगीत गाने की जिम्मेदारी मिली। बच्चों के साथ मिलकर उन्होंने गया– तुम मुझको विश्वास दो, मैं तुमको विश्वास दूं, शंकाओं के सागर हम तर जाएंगे। इस धरती को मिलकर स्वर्ग बनाएंगे।
यहां एंटोन चेखव की रूसी लघु कहानी पर आधारित नाटक ‘गिरगिट’ का मंचन किया गया। साहिबा, कैफ अंसारी, छाया सिंह, नितिन, सचिन, अतुल गोयल और असद अली खान ने शानदार अभिनय से नाटक में जान फूंक दी। यह लघु नाटक एक भ्रष्ट अधिकारी के परिस्थिति के अनुसार रंग बदलने पर आधारित है। एक आदमी को कुत्ता काट खाता है। सवाल उठता है कि कुत्ता किसका है। अधिकारी को बताया जाता है कि कुत्ता सेठ का है तो वह तुरंत रंग बदलता है और जब बताया जाता है कि कुत्ता सेठ का नहीं है तो फिर से वह रंग बदल लेता है। स्कूल के स्टाफ, बच्चों और जत्थे में शामिल लोगों ने इस प्रस्तुति की जमकर तारीफ की। इसके बाद जत्था चंद्रेश्वर मंदिर और गंगा के किनारे बने स्वामी विवेकानन्द स्मारक पर पहुंचा। स्वामी विवेकानन्द ने अपने ऋषिकेश प्रवास के दौरान इस मंदिर में छह महीने गुजारे थे। स्वामी विवेकानन्द को याद कर जत्थे में शामिल लोग त्रिवेणी घाट की ओर बढ़ गये।
त्रिवेणी घाट ऋषिकेश का मुख्य तीर्थ और स्नान घाट है। कई मंदिरों वाला यह क्षेत्र कई तरह के भजन कीर्तनों से गुंजायमान है। मंदिरों से घंटा–घड़ियालों की आवाजें उठ रही है। गंगा में डुबकी लगाकर सैकड़ों लोग अपने पाप धोने के उपक्रम में जुटे हुए हैं। कुछ लोग घाट की सीढ़ियों पर बैठे गंगा के प्रवाह और उसमें डुबकी लगा रहे लोगों को बेवजह निहारते प्रतीत हो रहे हैं। लेकिन, इस माहौल में पास ही बने एक स्तंभ की ओर किसी का ध्यान नहीं है, जिसे गांधी स्तंभ कहा जाता है। गांधी जी की हत्या के बाद उनकी अस्थियों को त्रिवेणी घाट पर भी प्रवाहित किया गया था। इसी घटना की याद में यहां गांधी स्तंभ का निर्माण किया गया था। जत्था सीधे गंाधी स्तंभ पर पहुंचा है। स्तंभ के चारों ओर छोटी–मोटी चीजें बेचने वालों की दुकाने हैं। लोहे के बैरियर से कवर किये गये गांधी स्तंभ के गेट पर भी खिलौने बेचने की एक दुकान सजी हुई है। दुकानदार अपना सामना थोड़ा आगे–पीछे कर गेट से अंदर घुसने की इजाजत दे देता है। जत्थे में शामिल दो सदस्य किसी तरह गेट से अंदर जाकर स्तंभ पर फूल माला अर्पित करते हैं। जत्थे में मौजूद नन्द नन्दन पांडेय, जगनन्दन शर्मा, असद अहमद, विक्रम पुंडीर, हरिनारायण, बीडी पांडेय, हरिओम पाली आदि गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाणे रे‘ गाते हैं। एक बार फिर इप्टा सहारनपुर की टीम जनगीत प्रस्तुत करती है। अब दिन के भोजन और कुछ देर विश्राम किया जाएगा।
दोपहर ढल चुकी है। आमतौर पर ऋषिकेश और इसके घाट ठंड के मौसम में भी दिन में गर्म रहते हैं, लेकिन दोपहर ढल जाने के बाद अब गर्मी कम है और जत्था एक बार फिर से आगे बढ़ने के लिए तैयार है। जनगीत गाते, नारे लगाते और पर्चे बांटते हुए जत्थे में शामिल लोग श्यामपुर की ओर बढ़ते हैं और अंधेरा होने से पहले एक छोटे से गांव खदरी खड़कमाफी पहुंच गये हैं। आज रात इसी गांव में पड़ाव होगा। मुनिकीरेती से चलकर खदरी पहुंचे यात्री थक चुके हैं, लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं है। लिहाजा फिर से एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया जाता है। दृष्टि संस्था के कुलदीप मधवाल बल्लीसिंह चीमा का जनगीत प्रस्तुत करते हैं। गांव के रायसिंह ने कबीर का गीत झीनी–झीनी चुनरिया गाया तो मानो सारी थकान उतर गई। गांव के 90 वर्षीय बुजुर्ग कुंदनसिंह ने हारमोनियम पर रागिनी प्रस्तुत की। इसके साथ ही अगले दिन जल्दी यात्रा शुरू करने का संकल्प लेकर भोजन और फिर गहरी नींद।
जनचौक में त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट